भगवान अमीरों का क्यों ?
जैसा कि हम सभी जानते हैं, ईश्वर एक है । वही हम सबके पिता हैं; उन्होंने ही हमें बनाया, दुनिया में लाया । इसलिए हम जो दो रोटी खाते हैं, वही देते हैं । उन्हीं की कृपा से मिलता है, अत: हमें ईश्वर की उपासना में अपना जीवन लगा देना चाहिये । हम पर उनका कर्ज़ है । इस कर्ज़ को हम अपनी उपासना से चुका तो नहीं सकते, लेकिन उनके करुणाधिकारी बन सकते हैं । मैं भी ईश्वर में उतना ही विश्वास करती हूँ, जितना आप; लेकिन फ़िर भी न जाने एक प्रश्न मुझे रात –दिन क्यों परेशान करता रहता कि जब हम सभी , इस जगत के छोटे-बड़े जीव-जन्तु, सब के सब उनके द्वारा बनाये गये हैं, वे हमारे पिता हैं; तो फ़िर, एक पिता अपने कुछ संतान को गरीब, कुछ को अमीर बनाकर क्यों रखते हैं ? वे दिन के बाद रात, रात के बाद दिन को आने की बारी देते हैं , तो फ़िर क्यों नहीं आदमी के जीते जी, सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख को लाते हैं । हमने देखा, जो गरीब है, गरीबी में रहकर दुनिया से विदा लेता है ; पर जो अमीर थे, वे अंतिम साँस भी चाँदी के पलंग पर ही छोड़े । ऐसा क्यों , क्या इसलिए तो नहीं कि स्वयं भगवान राम, भगवान कृष्ण रजकुल में जनम लिये । सभी जानते हैं, राजा का रिश्तेदार राजा होता है । इसलिए उनके रिश्तेदार भी अमीर होते हैं । तभी तो मंदिर में चढ़ावे के रूप में, कोई करोड़, कोई सोने का हार, कोई सोने की मोटर कार उनको भेंट करता है । अगर उनकी रिश्तेदारी, सचमुच गरीबों से होती, तो क्या एक गरीब, उनके दरवार में बैठकर रोटी के लिए हाथ पसारे मिलता । कदापि नहीं, मगर ऐसा नहीं होता । एक पिता के दो संतान; एक को झोपड़ा और दूसरे को महल । भगवान चूँकि खुद अमीर घरानों में जन्म लेना पसंद करते हैं, अत: जान –पहचान व रिश्तेदारी भी अमीरों से ही बनाते हैं ।
शास्त्र कहता है, सच्चे मन से अगर ईश्वर से कुछ माँगा जाय तो वह अवश्य मिलता है । मैं भी अपने शास्त्र का पूरा सम्मान करती हुँ । मेरा तो बस इतना कहना है कि, जो लोग अमीर होते हैं, उनके पास ईश्वर से कुछ माँगने का समय भी होता है क्या ? मैंने देखा है, इस काम के लिए, तो वे लोग ब्राह्मण नियुक्त कर रखते हैं, जो मालिक के घराने का शुभचिंतक बनकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं , हे ईश्वर ! मेरे मालिक के व्यवसाय पर अपना करुणा वाला हाथ बनाये रखना । जिससे मेरे मालिक का व्यवसाय देश ही नहीं , विदेश में भी फ़ले- फ़ूले । देखा जाता है कि ब्राह्मण की प्रार्थना ऊपर वाला ठीक सुनता है । ब्राह्मण बेचारा तो गरीब ही रहता है, लेकिन मालिक करोड़ से अरब में पहुँच जाते हैं । इसका ठीक उलटा; एक गरीब, खाना –पीना छोड़कर ईश्वर को मनाने के लिए उपवास रखता है । घर का बरतन – बासन बेचकर अगरबत्ती, अक्षत और फ़ूल चढ़ाता है, स आस में कि ईश्वर ने चाहा तो ऐसे बरतन से घर भर जायेंगे ।लेकिन ऐसा नहीं होता, दूसरे दिन से खाना बनाने के लिए, मिट्टी का एक बिरुवा भी नहीं मिलता और तब गरीब को समझ आता, कि मैंने ईश्वर के लिए जो किया, वह कितना उचित थी ?
मैंने अपने पुरखों से यह भी सुना, जो धन गलत रास्ते से आता है, वह गलत राश्ते से चला भी जाता है । ऐसा धन टिकता नहीं । मैं कहती हूँ, यह अच्छे लोगों के मन की सन्तुष्टि के सिवा और कुछ नहीं । सही रास्ते चलते-चलते मेरे पिता के पाँव के जूते घिस गये, एक बीघा जमीन भी न जोड़ सके । वहीं पर, गाँव का मुखिया, सरकारी पैसों के काले धंधे कर, सैकड़ों बीघे जमीन का मालिक हो गया । मेरे कहने का , मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि हमें भी अमीर बनने के लिए, इस घिनौने रास्ते से चलना चाहिये । कदापि नहीं । मेरी तो उस ईश्वर से बस इतनी सी शिकायत है कि तुम तो सर्वव्यापी हो, सब के रोम-रोम में वास करते हो; तब भी तुम इन सब बातों से अनभिग्य हो । या फ़िर जान- बूझकर अपने रिश्तेदारों की सहायता तो नहीं कर रहे हो ? अन्यथा बुरे कर्मों का फ़ल जब बुरा होता है, तो फ़िर उसे उस फ़ल से वंचित क्यों रखते हो ?
एक गरीब, किसी दूकान से, एक रॊटी का पैकेट चुराकर भागता है , तो लोग उसे पीटते हैं । गर्म लोहे से दागते हैं । क्या तुम उसे बचा नहीं सकते ? उस अमीर दूकानदार के हाथ में लकवा मार नहीं सकते । तुम्हारी नज़रों के आगे मंदिर परासर में मैंने देखाहै, एक अबला नारी की इज्जत को लुटते हुए । उसकी चीख रास्ते से जा रहे राहगीर तक सुने । क्या तुम ईश्वर होकर भी नहीं सुन सके ? द्रौपदी के चीर हरण के समय तो तुम, अपना विशाल रूप लेकर खड़े रहे । क्या ये गरीब अबला तुम्हारी बहनें नहीं हैं ? या फ़िर गरीबों की इज्जत तुम्हारी नज़रों में कोई मूल्य नहीं रखती । या फ़िर तुमको भी इन दानवों से डर लगता है ? अगर ऐसी बात नहीं है तो आज अन्याय पर अन्याय चल रहा है, कत्ल- बेईमानी उफ़ान पर है; एक बार फ़िर से तुम राम के रूप में अवतार लेकर आओ । तप रही धरती को अपनी करुणा और प्यार से शीतल कर दो । मैं जानती हूँ, गरीबी क्या होती है ? गरीबों की जिंदगी कितनी पीड़ादायक होती है । मगर तुम कैसे जानोगे, तुमने कभी गरीबी झेली कहाँ ? जब भी दुनिया में आने का मन हुआ , राजघरानों को चुना । नौकर – चाकर, धन- दौलत की चकाचौंध में गरीबॊं की आह तुम तक पहुँच कहाँ सकी ? कभी तुम उनसे मिल भी नहीं सके । तुम जब भी मिले, अपने रिश्तेदारों से मिले । यही कारण है कि आज तुम अपने अमीर रिश्तेदारों के हो; गरीबों के नहीं ।
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