Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भगवान अमीरों का ही क्यों

 

 जैसा कि हमें बचपन से सिखाया और बताया जाता है, इस दुनिया को बनाने वाली एक शक्ति है, जिसे हम भगवान कहते हैं । हम जितने भी छोटे- बड़े जीव – जंतु यहाँ देखते हैं, सबों को उसी ने बनाया हैं । उसी ने सभी जीवों में प्राण रूपी जान को भरा है; वो अगर नहीं चाहें तो यह दुनिया अभी का अभी प्राणरहित हो जाय । उसी की कृपा से हमें दो वक्त की रॊटी मिलती है । उसी के शुभ आशीर्वाद से हम नीरोग रहकर खुशहाल जीवन व्यतीत करते हैं ।

        मैं भी इन सब बातों को मानती हूँ , अपने शास्त्रों का सम्मान करती हूँ । फ़िर भी एक प्रश्न हमेशा मेरे दिल को अशांत किये रखता है । जब हम सब के पिता एक हैं, तो फ़िर उसने अपने संतान में किसी को करोड़पति, किसी के पास फ़ूटी कौड़ी नहीं; ऐसा क्यों बनाया ? एक पिता को अपने संतान को गरीब बनाते वक्त दया क्यों नहीं आई ? ऐसा कौन सा अपराध जनमने से पहले उस संतान ने किया, जो उसे नाले के कीड़े के समान जीवन जीने को बाध्य किया । लोग चौरासी लाख जनम में विश्वास करते , तो करें । मुझे तो इसी एक जनम पर भरोसा नहीं है । भरोसा हो भी तो कैसे ? जो लोग गरीब हैं, जिनके बच्चे दाने-दाने को रटकते – रटकते मर जाते हैं ; समझ में नहीं आता, वे लोग नाले के कीड़े हैं या एक रोटी के लिए छीना- झपटी करते हुए रास्ते के कुत्ते हैं । अब आप ही बताइये, इसे आदमी जनम कहें या जानवर की; क्या कहें ?

          मुझे तो ऐसा लगता है, जिस प्रकार किसी अमीर का रिश्तेदार अमीर होता है, गरीब नहीं हो सकता; ठीक उसी तरह हमारे राम – कृष्ण , दोनों ही राजा थे । इसलिए उनके सगे-संबंधी सभी अमीर होते हैं । गरीबों से राजा की कोई रिश्तेदारी नहीं होती । यही कारण है कि भगवान गरीब को नहीं पहचानते । जब वे मनुष्य योनि में यहाँ आये, तब भी बेचारे गरीब राज दरवार के करीब भी पाँव नहीं रख पाते थे । अगर किसी को यह सौभाग्य मिलता भी था , तो पहले द्वारपाल के रहमो-करम से गुजरना पड़ता था । पर जो राजा- महाराजा होते थे, उन्हें तो बस , भीतर राजमहल में एक खबर भिजवाने की देर रहती थी । राजमहल उनके स्वागत में खड़ा हो जाता था ।

        आज जब भगवान मनुष्य रूप को त्यागकर मूर्ति रूप में विराजमान हैं ; तब भी गरीबों के लिए उस तक पहुँचना मुश्किल होता है । आप किसी मंदिर में जाइये । अमीर हैं; नामी- ग्रामी हैं तो कोई बात नहीं – आपके स्वागत में द्वारपाल स्वरूप पंडित, ब्राह्मण सभी हाथ जोड़े खड़े हैं । आपको भीतर ले जाकर भगवान से मुलाकात कराने के लिए । इसके लिए आपको कतार में खड़े होने की कोई जरूरत नहीं । जितनी देर तक आपकी इच्छा हो , पूजा- पाठ, मंत्र-जाप कीजिये ।  तब तक जो गरीब कतार में खड़े हैं , वे आपके निकलने का ईंतजार करेंगे ; चाहे सुबह से शाम क्यों न हो जाय । मजाल क्या कि बिना ब्राह्मण की आग्या के मंदिर में आप प्रवेश कर जायें । आपको धक्के मारकर बाहर फ़ेंक दिया जायगा; आपके हाथ- पैर शरीर से अलग कर दिये जायेंगे । भगवान से मिलना तब भी गरीबों के लिए मुश्किल था और आज भी मुश्किल है ।

         मुझे बस इस बात पर भगवान से शिकायत है कि अगर तुम अपने बच्चों को एक नजर से पालते, बड़े करते, एक जैसा प्यार देते; अपने स्नेह की गंगा में सभी बच्चों को बराबर का स्नान करने की इजाजत देते—तो क्या, तुम्हारे बच्चे,कोई सोने के पलंग पर और किसी को दो गज धरती नसीब नहीं , ऐसा होता क्या, कदापि नहीं । भगवान अपने बच्चों के साथ सगा पिता कहलाकर सौतेला व्यवहार क्यों करता है ?

          शास्त्र कहता है, सच्चे मन से अगर भगवान से कुछ माँगा जाये, तो अवश्य मिलता है । तो क्या गरीब, अपनी गरीबी को दूर करने की भीख, भगवान से सच्चे मन से नहीं माँगते हैं । दाने- दाने को तरसते बच्चे, रोग पीड़ित, असहाय गरीब, ’ हमें स्वस्थ कर दो का रट, सच्चे दिल से भगवान के आगे नहीं लगाते हैं । क्या वे ऐसा सोचते हैं कि सच्चे दिल से माँगने पर वह सब मिल जायगा, इसलिए दिल में खोंट रखकर माँगो , ताकि हमारी दरिद्रता कभी दूर न हो ।’ ऐसा नहीं होता, भगवान से मिन्नतें करते –करते उनकी जिह्वा घिस जाती है । किसी विरले का ही पुकार उस तक पहुँचता है । जब कि एक अरबपति के पास इतने समय नहीं होते कि बार-बार एक चीज को माँगने भगवान के दरवार में जाये । वे तो अपने नियुक्त किये गये ब्राह्मण से कहलवाते हैं; फ़िर भी भगवान उसकी इच्छा को पूरी करते हैं । बदले में चढावे के रूप में भगवान को हीरे का हार, सोने की मोटरकार, जवाहरात के मोबाइल मिलते हैं । अर्थात जितना बड़ा आशीर्वाद, उतना बड़ा चढावा ।

      दूसरी यह बात मुझे झकझोड़ती रहती है, शास्त्र कहता है, जब-जब धरती पर अन्याय चरम सीमा पर पहुँचा है; तब-तब भगवान, मनुष्य रूप में उस अन्यायी को दण्डित करने यहाँ आये है  । उदाहरण के लिए – दु:शासन द्वारा जब , द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था; तब द्रौपदी की एक पुकार पर कृष्ण उसकी लज्जा बचाने दौड़े चले आये थे । आज न जाने कितनी ही द्रौपदी                                            

का चीर हरण भगवान के मंदिर में होता है । क्या वह अबला भगवान से ’बचाओ-बचाओ’ की गुहार नहीं लगाती हैं ? अवश्य लगाती हैं, पर भगवान का पास आने और बचाने की बात दूर, वे तो सिंहासन पर से हिलते तक नहीं । हिलें भी तो कैसे ---

द्रौपदी उनकी सगी बहन थी, और अपनों का दर्द सबों को होता है । मगर एक गरीब द्रौपदी भगवान की बहन कैसे हो सकती है ? अगर यह वाकया किसी उद्योगपति घराने की औरतों के साथ हो, तो फ़िर देखिये, दिल्ली तक हिल जाता है । अर्थात अमीरों की रिश्तेदारी अमीरों से चलती है । हमारे भगवान जब भी जनम लिए, राजघराने में जनम लिए । तो स्वाभाविक है कि उनके रिश्तेदार भी अमीर होंगे ; पैसे वाले होंगे । इसलिए भगवान अमीरों के हैं ।

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