भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
तूनेमुझे अपने गले से लगाया
वीरानों में बहारआ गई , दिल-ए-
नाशाद को मुद्दतों बाद चैन आया
जो जमाने के तूफ़ां की मौज से बचे
हम, तो फ़िर मिलेंगे,गर खुदा मिलवाया
फ़ुरकत1की आग में सब कुछ जल गया
मेरे ही मुख से यह बयां क्यों करवाया
दुनिया में हर एक से इन्सानियत का
वार नहीं उठता, जो आज तूने उठाया
- जुदाई 2. बोझ
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