भूतहा – पीपल
दुखना पवन गति से भागता हुआ, दरवाजे पर से अपने पिता, करोड़ीमल के पास आया, और हाँफ़ते हुए बताया--- बाबू ढ़ोल बज रहा है । करोड़ीमल अनहोनी की आशंका से काँप गया । उसने दुखना से पूछा--- वो क्यों , क्या हुआ है ?
दुखना,जैसे गहराई में डूबकर बताया ---मुझे नहीं मालूम ।
दुखना का उत्तर सुनकर, करोड़ीमल काले बादल की तरह गरज उठा, और कहा--- तो जाकर पता करो न ? फ़िर मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोला--- जहाँ ढ़ोल बज रहा है, वहाँ न जाकर चला आया मेरे पास , यह जानने कि ढ़ोल क्यों बज रहा है ; जैसे लगता है, मैं ही ढ़ोल बजा रहा , बेवकूफ़ लड़का !
करोड़ीमल के गुस्से से भयभीत दुखना, कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा, लेकिन धीरे-धीरे फ़िर वह वापस दरवाजे पर चला गया, तभी अपना बकाया राशि वसूलने मैकू, करोड़ीमल के पास आया, और बताया---- जानते हो करोड़ीमल , आज फ़िर भूतहा पीपल का शिकार हमारे गाँव का एक नौजवान हो गया ।
करोड़ीमल दबी आवाज में पूछा--- वो कौन है ?
मैकू बोला---- इस बार ’मुखिया का बेटा” है ?
करोड़ीमल---- ’मुखिया का बेटा”, सुनते ही उछल पड़ा और कहा--- चलो, पहली बार तुमने एक खुशी का समाचार लाया, लेकिन यह काम भूतहा-पीपल को बहुत पहले ही कर लेना चाहिये था , बड़ी देरी कर दी । फ़िर उपहास के स्वर में बोला--- कोई बात नहीं, देर से किया, लेकिन दुरुस्त काम किया । मगर अब भूतहा-पीपल के बारे में मुखिया का क्या विचार है, क्या अब भी रहेगा या कटेगा ?
मैकू, चेयर खींचकर बैठते हुए बोला—वही तो बताने आया हूँ तुमसे ?
करोड़ीमल हँसने लगा ,और बोला--- लेकिन तुमको ऐसे वक्त में बकाया वसूलने नहीं आना चाहिये था । कल आते तो, क्या होता; जमीन धँस जाती , आसमां फ़ट जाता या मैं गाँव छोड़कर भाग जाता । गाँव के लोग ,तुम्हारे बारे में क्या सोचेंगे ? जब गाँव पर दुख का पहाड़ गिरा है, मैकू अपनी देनदारी वसूलने घर-घर घूम रहा है ।
करोड़ीमल की बात सुनकर मैकू तुनक पड़ा, और असंतुष्ट होते हुए बोला--- कैसी बातें करते हो ? तुम आदर्श की धुन में व्यवहारिकता का भी विचार नहीं करते , और जो जी में आता , वही बोल जाते हो । फ़िर उदासीन भाव से कहा--- मैं तो यहाँ तुहारे पास मुखिया के हुक्म का फ़रमान सुनाने आया था ।
करोड़ीमल चौंकता हुआ मैकू की तरफ़ देखकर पूछा--- क्या है फ़रमान ?
मैकू ने कहा--- अभी-अभी तुमको पंचायत में जाना है, जहाँ तक मुझे मालूम हुआ है कि मुखिया उस भूतहा पीपल को काटना चाहता है ।
मैकू की बत सुनकर करोड़ीमल का खून खौल गया, वह उत्तेजित होकर बोला---आखिर आया, ऊँट पहाड़ के नीचे । दश साल से लगभग , हर महीने गाँव का कोई न कोई आदमी, उस भूतहा-पीपल का खुराक बनता आ रहा है । कई बार गाँव वाले मुखिया से विनती किये कि रोज-रोज की इस अनचाही विपत्ति को रोकने के लिए भूतहा-पीपल को काटना बहुत जरूरी है । तब मुखिया ने एक न सुनी, बल्कि यह कहकर अपना माथा पीट लिया था कि गाँव में हाहाकार मच जायगा, महामारी फ़ैल जायगी । तो क्या अब ऐसा कुछ नहीं होगा, इसलिए कि मुखिया का बेटा मरा है ?
मैकू आँख पर ऐनक चढ़ाते हुए बोला--- वो तो मुखिया से जाकर पूछने से होगा । यहाँ मुखिया के बदले मैं क्या बताऊँ ? तभी तो मैं कह रहा हूँ, पंचायत में चलो, जो बोलना हो, सब के सामने बोलो ।
करोड़ीमल के अंत:करण में क्रांति उठ रही थी, उसका वश चलता तो आज ही मुखिया का जीवन अंत कर दे्ता, जो गाँव को इतने दिनों से नरक बनाये हुए था । मैकू , चुपचाप वहाँ से खिसक जाने में ही भलाई समझा, क्योंकि वह समझ गया था, इस वक्त जो और अधिक करोड़ीमल को छेड़ा, तो उसकी खैर नहीं , अभी इसके सिर से पाँव तक बारूद भरा हुआ है । लेकिन जाते-जाते फ़िर एक बार कहता गया--- पंचायत रात आठ बजे से होगी, संभव हो तो आ जाना ।
करोड़ीमल ठीक आठ बजे मुखिया के दरवाजे पर पहुँचा, देखा---- और लोग भी वहाँ पहले से बैठे हुए हैं । सब के जु्बां पर बस एक ही बात थी ; बहुत हो गया, अब उस भूतहा पीपल को काट देना जरूरी है । सहने की भी हद होती है, पानी सर से ऊपर जा चुका है, अब नहीं कटा तो, कभी नहीं कटेगा ।
पंचायत आरम्भ हुई, सभी लोग अपना-अपना विचार रखे, करोड़ीमल भी अपना विचार रखते हुए कहा--- जिस पेड़ को दश साल पहले कट जाना चाहिये था , वह अभी तक मुखिया जी की मेहरबानी से जिंदा है । तभी करोड़ीमल का बुजुर्ग चाचा ( लखन) उसे बीच में बोलने से रोकते हुए कहा--- अब पिछली बातों को भूल भी जा, अब तक जो हुआ, उसका अफ़सोस मुखिया को भी है । माना कि तुम धर्म की लड़ाई लड़ रहे हो, लेकिन धर्म की लड़ाई लड़ते समय क्रोध आ जाये, तो धर्म के हाथ अधर्म हो जाता है ।
अपने हुकूमत का रोब और अधिकार का गर्व करने वाले चाचा की आँखें, करोड़ीमल की बातें सुनकर सजल हो गई , वे दोनों हाथ जोड़कर करोड़ीमल के सामने खड़े हो गये और कहे--- मुझे माफ़ कर दो , मुझसे बड़ी खता हो गई । चाचा की सज्जनता और सत्प्रेरणा से भरा हुआ तिरस्कार, करोड़ीमल के हृदय में हलचल मचा दिया । फ़िर क्या था ,करोड़ीमल जो अब तक अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया था, आज तैयार हो गया, कहा--- ठीक है, मुखिया साहब का यही विचार है, तो ऐसा ही होगा । मुखिया आया, भूतहा-पीपल के अच्छे-बुरे सभी संदर्भ में चर्चा हुई, लेकिन पहले से तय प्रस्ताव के अनुसार बात भूतहा-पीपल को काटने पर ठहर गई, गाँव के सभी लोग एक साथ गँड़ासा और कुल्हाड़ी लेकर निकले । मुखिया आगे –आगे चले, बाकी लोग पीछे-पीछे । कुछ दूर जाने पर चाचा, पोपले मुँह में पान चबाते हुए बोले--- मैं न होता, तो आज भी यह गाछ नहीं कटता ।
शाम होने ही वाली थी, भूतहा पीपल का पिशाच अंधेरा बन गाँव पर आतंक मचाये , उसके पहले लोग कुल्हाड़ी लेकर पेड़ को काटने लगे । जब आधी जड़ कटी , तब चाचा, जान लेकर भागे । चाचा को भागता देख, बाकी लोग भी पीछे-पीछे भागे । वृद्ध चाचा, भागते-भागते गिर पड़े और बेहोश हो गये । बड़ी मशक्कत के बाद जब चाचा होश में आये, तब जो कुछ उन्होंने बताया, लोग सु्नकर मूरत की भाँति अपनी जगह पर खड़े के खड़े रह गये । उन्होंने बताया--- उस पेड़ पर कोई भूत नहीं रहता, बल्कि वहाँ एक विशाल अजगर का डेरा है । वही आज तक हमारे गाँव के लोगों को अपना निवाला बनाते रहा और हमलोग भूत समझकर, उसे खुश रखने के लिए ,उसके जड़ को दूध से सींचते रहे । वह अजगर , हमारा ही दूध पीकर ,हमें ही अपनी खुराक बनाता रहा । फ़िर क्या था, लोग अजगर के ऊपर लाठी- डंडे बरसाने लगे । मार खा-खा कर अजगर जब हिलना-डुलना बंद कर दिया, तब लोगों ने कटे पेड़ की लकड़ी उस पर डालकर आग लगा दी । देखते ही देखते अजगर जलकर राख हो गया । अब वहाँ न अजगर है, न ही पीपल का पेड़; बावजूद हमारे गाँव को लोग भूतहा-पीपल से ही जानते हैं ।
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