भुतना का तोता
डिहरी गाँव के भुतना का एकाएक पशुता छोड़ , देवता बन जाना ,लोगों को अचरज में डाल दिया | किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था , यह सब हुआ कैसे ? वही लोग जो कभी उसकी बात का मखौल उडाया करते थे, अब उसकी हर बात को एक पुण्य-आत्मा की आवाज समझने लगे | भुतना कहता था ----संत का काम है, उपदेश देना और भक्त का काम है---अक्षरश: उसका पालन करना; इसी को गुरुभक्ति कहते हैं | हमारे ग्रंथों में भी यही कहा गया है, कि गुरु की अवहेलना करना महापाप है ; गुरु विमुख प्राणी नरक में जाता है | ऐसे ही बचन दवारा भुतना , धीरे-धीरे त्यागी महापुरुष की श्रेणी में गिना जाने लगा | उसकी श्रद्धा करने वालों की संखया बढने लगी | श्रोताओं में पटवारी, चौकीदार, थानेदार, कभी-कभी तो बड़े हाकिम भी आ जाने लगे | भुतना भी उनलोगों का जोरदार स्वागत करने लगा | आठो पहर अपमान का घूँट पीनेवाला भुतना , प्रतिबद्धता का वह चिनगारी बन गया ,जिससे दोनों तरह के पुरुषों का ह्रदय-दीपक प्रकाशित होने लगा |
एक दिन भुतना अपने घर के मुरेड़ पर बैठा , एक तोते को पकड़ने में किसी तरह कामयाब हो गया | फिर क्या था, भुतना का दिन फिर गया ; उसकी तो चाँदी निकल आई | उसने सबसे पहले तोते को ‘हाँ ‘ और ‘ना’ कहना सिखाया | जब तोता पूरी तरह ‘हाँ’ ,’ना’ बोलने लगा , तब उसे लेकर भुतना ,गाँव के बाहर एक चौराहे पर बैठ गया | लोगों के पूछने पर बताया था ---- यह एक चमत्कारी तोता है, यह किसी भी समस्या का हल होना और न होना, ‘हाँ’ और ‘ना’ में बता देता है |
इतनी अल्पावस्था में भुतना के तोते की अलौकिक सिद्धि को देखकर लोग विस्मित हो जाने लगे | आस-परोस के समस्त गाँवों में उसकी ख्याति फ़ैल जाने लगी, मानो उसने दिग्विजय कर लिया हो | ऐसे तो भुतना बहुत गरीब,और दुर्बल नौजवान था, लेकिन उसका तोता उसके रूप को चमत्कृत कर दिया था |
भुतना के गाँव के मुखिया , सोहनलाल की पत्नी, कलावती जो एक गर्वशीला, धर्मनिष्ठा , संतोष और त्याग के आदर्श का पालन करनेवाली नारी थी , जिसके चरित्र में रमणीयता , और लालित्य के साथ पुरुषों का साहस और धैर्य भी मिला हुआ था | यद्यपि अपने पति की स्वार्थभक्ति से उसे बहुत घृणा थी , पर इस भाव को वह पति-सेवा में कभी बाधक नहीं बनने दी | उसे जब पति के अध्:पतन का पता चला , तब उसकी श्रद्धा भी धुँधली पड़ने लगी | यह नफ़रत नहीं, बल्कि उसकी अहि-चिंता थी | उसने कई बार अपने व्यंग्य-सरों से छेदना और कटु शब्दों से पति के ह्रदय को वेधना चाही, मगर सोहनलाल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता | पति के नित्य निन्द्य -घृणित दृश्य ने कलावती के दिल से अपनेपन को मिटा दिया था | कभी वह सोचती --- इसमें हस्तक्षेप करूँ , कभी सोचती थी आत्महत्या कर लूँ | सारी रात आँखों में कट जाती , दिन शून्य आकाश की ओर ताकते निकल जाती थी , एक पड़ोसिन ने बातों ही बातों में बताया,कही--- जानती हो कलावती ! अपने गाँव के भुतना के पास एक तोता है ; सुनती हूँ , तोता तीनो काल का ज्ञाता है, सठीक भविष्यवाणी करता है |
कलावती,यह जानकर हलसती हुई बोली --- अच्छा, ऐसी बात है, तो कल मैं उससे मिलकर देखती हूँ | सच है या कोई छलावा ; मैं पूछूँगी--- मेरी दश वर्षों की अविश्रांत तपस्या निष्फल क्यों हो गई ? जीवन की आशाएँ आकर लौट क्यों गईं ? उसके वापस लाने के लिए मैंने अपनी आत्मा पर कितना अत्याचार किया, देवताओं के आगे कितनी मिन्नतें माँगी, पर सारे प्रयत्न निष्फल रहे,क्यों ? इन क्षोभयुक्त विचारों से उसने खुद को उसने इतना कोसा, कि उसकी आँखें भर आईं, अपनी विवशता पर उसे इतना दुःख कभी नहीं हुआ था, जितना आज बताते हुए हो रहा था |
यद्यपि कलावती , मनोभावों को गुप्त रखने में सिद्धहस्त थी, लेकिन आज उसका खिसियाया चेहरा उसकी सारगर्भित प्रेमव्याख्या का पर्दा खोल दे रहा था | उसकी व्यग्रता इतनी बढ़ गई थी , कि वह स्थिर न रह सकी | स्त्री-धर्म, उसके पैरों को चौकठ से बाहर जाने नहीं दे रहा था , बार-बार वह धर्म की शिलाओं से टकराकर लौट आती थी | उसे लगा कि धर्म उसे कह रहा है --- प्रेम नश्वर है , निस्सार नहीं | कौन किसका पति, कौन किसकी पत्नी ? यह सब मायाजाल है, पर मैं अविनाशी हूँ , तुम मेरी रक्षा करो | कलावती स्तंभित हो गई , पर धर्म की उठती लहरें , कलावती के मन टीले को न तोड़ सकी , चित्र की दृढ़ता और मनोबल का उसे अनुभव ही नहीं हुआ | उसे अपने जीवन के सागर -तट की रक्षा स्वयं करना होगा, कारण उसकी सारी आकांक्षाएँ इसी तट पर विश्राम किया करती थीं, जिसे प्रेमलता ने इस रक्षा-तट को विध्वंश कर दिया | वह जल्दी-जल्दी कदम बढाती हुई, उस चमत्कारी तोते से मिलने, भुतना के घर पहुँच गई | जेठ महीने की चिलचिलाती धूप में, एक अनजान, उस पर जवान महिला को देखकर भुतना किसी अनहोनी की आशंका से काँप गया | उसने विनती कर पूछा --- नैराश्यमुखी ! तुम्हारी क्या समस्या है , जो इस झुलसती धूप में तुम, सबसे आँखें बचाकर मुझसे मिलने आई हो ? तुम्हें देखकर लगता है , तुम कोई साधारण नार
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