भूतों का भूख हड़ताल
पिता चरणदास के स्वर्ग सिधारने के बाद ,अकेला पड़ा कलुवा के मन और बुद्धि में महींनों तक यह संग्राम चलता रहा--- ’अब मुझे जीना चाहिये या नहीं, और अगर जीऊँ तो क्यों और किसके लिए ? जीने का कुछ तो मकसद होना चाहिये, तभी उसकी आँखों के आगे, बिस्तर पर बीमार पड़ी माँ ( झुनियाँ ) का चेहरा कौंध जाता और दूसरे ही पल तय कर लेता,कि मुझे जीना होगा’ । अपने लिए नहीं, अपनी माँ के लिए और तुरंत वह डोरी और हँसिये को कमर में बाँधकर लकड़ी लाने जंगल की ओर रवाना हो जाता । मगर रास्ते भर अपने कोमल, पवित्र, मनोहर स्मृतियों को जागृत करने वाला, पिता के साथ बिताये पल को याद कर बिफ़र पड़ता ; सोंचता---’ जब पिताजी थे, तब हमारा घर पूजा की वेदी के साथ त्याग का बलिदान-स्थल बना हुआ था , आज वह मरुतुल्य हो गया । ममता की मंडप माँ तो है, मगर बिस्तर पर मरणासन्न होकर पड़ी हुई । ऐसे में मेरे लिए घर से विमुख होकर जीना पाप होगा ,और वह भी ऐसा पाप जिसका तीनों लोकों में क्षमा नहीं ।’
कलुवा रास्ते भर सोचता और सोच-विचारकर बिलख पड़ता, फ़िर अपने दोनों हाथों, अपने गालों से होकर ढ़लक जा रहे आँसू हटा ऐसे देता, मानो सर्प डँस लिया हो । साथ चल रहे उसके दोस्त रामू ने जब देखा, कलुवा रो रहा है, और अपने ही अंतर्ध्वनि से व्याकुल भी हो रहा है, तब उसने ठहरकर कलुवा से कहा----क्या बात है कलुवा ! तुम रो क्यों रहे हो ?
कलुवा सिर झुकाये, व्यथा भरे वक्षस्थल को दबाये कुछ पल चुपचाप रामू की ओर देखता रहा, फ़िर बच्चों की तरह बिफ़र उठा, बोला----- ’जब से काल का विशृंखल पवन ,मेरे पिता को मुझसे दूर उड़ा ले गया, मैं खुद को अकेला महसूस करने लगा हूँ । मेरे लिए जीना मुश्किल हो गया है, मैं जीना नहीं चाहता । घर की निर्मम शून्यता, घर की दीवारों से टकराकर इतना शोर मचाती है, कि मैं रातों को सो नहीं पाता’ ।
रामू ने देखा, कलुवा अपनी मर्मांत पीड़ा की अभिव्यक्ति भी नहीं कर पा रहा है । ’विधाता यह कैसा न्याय है, जिसे लोग अपने प्राण से भी ज्यादा प्यार करते हैं, उसके साथ, तुम्हारी मर्जी के बगैर रह भी नहीं सकते’ । उसने कलुवा को समझाते हुए कहा--- मैं जानता हूँ कलुवा, ऊपर वाले के विश्वासघात की ठोकरों ने तुमको विक्षिप्त बना दिया है , दुनिया से विमुख कर दिया है । लेकिन तुमको जीना होगा, अपने लिए नहीं, अपनी बीमार माँ के लिए । उस देवी के लिए, जिसने तुम्हें जन्म दिया, पाला, और इस लायक बनाया कि अब तुम उनकी देख-रेख कर सको । तुम्हारे पिता की आत्मा भी शायद यही चाहेगी । फ़िर गर्वपूर्वक बोला---- ऐसे तुम चाहो तो अपने पिता से मिल सकते हो ।
कलवा, रामू की बात सुनकर उछल पड़ा, पूछा---- वो कैसे ?
रामू ----- रामधारी चाचा आज बता रहे थे कि दिल्ली में जंतर-मंतर पर कल भूतों की भूख हड़ताल है, इसलिए देश भर के सारे भूत वहाँ जमा हो रहे हैं ।
कलुवा, अचम्भित हो बोला----- वह कैसे ? मेरी माँ का कहना है , जाने वाले लौटकर नहीं आते , चाहे कितना ही छाती पीट लो । फ़िर रामू को झुठलाते हुए कहा--- ऐसा नहीं हो सकता ।
रामू---- तो क्या, रामधारी चाचा झूठ बोलSubmit Comment