Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भूतों का भूख हड़ताल

 

भूतों का भूख हड़ताल


पिता चरणदास के स्वर्ग सिधारने के बाद ,अकेला पड़ा कलुवा के मन और बुद्धि में महींनों तक यह संग्राम चलता रहा--- ’अब मुझे जीना चाहिये या नहींऔर अगर जीऊँ तो क्यों और किसके लिए ? जीने का कुछ तो मकसद होना चाहियेतभी उसकी आँखों के आगेबिस्तर पर बीमार पड़ी माँ ( झुनियाँ ) का चेहरा कौंध जाता और दूसरे ही पल तय कर लेता,कि मुझे जीना होगा’  अपने लिए नहींअपनी माँ के लिए और तुरंत वह डोरी और हँसिये को कमर में बाँधकर लकड़ी लाने जंगल की ओर रवाना हो जाता  मगर रास्ते भर अपने कोमलपवित्रमनोहर स्मृतियों को जागृत करने वालापिता के साथ बिताये पल को याद कर बिफ़र पड़ता ; सोंचता---’ जब पिताजी थेतब हमारा घर पूजा की वेदी के साथ त्याग का बलिदान-स्थल बना हुआ था आज वह मरुतुल्य हो गया  ममता की मंडप माँ तो हैमगर बिस्तर पर मरणासन्न होकर पड़ी हुई  ऐसे में मेरे लिए घर से विमुख होकर जीना पाप होगा ,और वह भी ऐसा पाप जिसका तीनों लोकों में क्षमा नहीं 

कलुवा रास्ते भर सोचता और सोच-विचारकर बिलख पड़ताफ़िर अपने दोनों हाथोंअपने गालों से होकर ढ़लक जा रहे आँसू हटा ऐसे देतामानो सर्प डँस लिया हो  साथ चल रहे उसके दोस्त रामू ने जब देखाकलुवा रो रहा हैऔर अपने ही अंतर्ध्वनि से व्याकुल भी हो रहा हैतब उसने ठहरकर कलुवा से कहा----क्या बात है कलुवा ! तुम रो क्यों रहे हो ? 

कलुवा सिर झुकायेव्यथा भरे वक्षस्थल को दबाये कुछ पल चुपचाप रामू की ओर देखता रहाफ़िर बच्चों की तरह बिफ़र उठाबोला----- ’जब से काल का विशृंखल पवन ,मेरे पिता को मुझसे दूर उड़ा ले गयामैं खुद को अकेला महसूस करने लगा हूँ  मेरे लिए जीना मुश्किल हो गया हैमैं जीना नहीं चाहता  घर की निर्मम शून्यताघर की दीवारों से टकराकर इतना शोर मचाती हैकि मैं रातों को सो नहीं पाता’ 

रामू ने देखाकलुवा अपनी मर्मांत पीड़ा की अभिव्यक्ति भी नहीं कर पा रहा है  विधाता यह कैसा न्याय हैजिसे लोग अपने प्राण से भी ज्यादा प्यार करते हैंउसके साथतुम्हारी मर्जी के बगैर रह भी नहीं सकते’  उसने कलुवा को समझाते हुए कहा---  मैं जानता हूँ कलुवाऊपर वाले के विश्वासघात की ठोकरों ने तुमको विक्षिप्त बना दिया है , दुनिया से विमुख कर दिया है  लेकिन तुमको जीना होगाअपने लिए नहींअपनी बीमार माँ के लिए  उस देवी के लिएजिसने तुम्हें जन्म दियापालाऔर इस लायक बनाया कि अब तुम उनकी देख-रेख कर सको  तुम्हारे पिता की आत्मा भी शायद यही चाहेगी  फ़िर गर्वपूर्वक बोला---- ऐसे तुम चाहो तो अपने पिता से मिल सकते हो 

कलवारामू की बात सुनकर उछल पड़ापूछा---- वो कैसे ?

रामू ----- रामधारी चाचा आज बता रहे थे कि दिल्ली में जंतर-मंतर पर कल भूतों की भूख हड़ताल हैइसलिए देश भर के सारे भूत वहाँ जमा हो रहे हैं 

कलुवाअचम्भित हो बोला----- वह कैसे ? मेरी माँ का कहना है जाने वाले लौटकर नहीं आते , चाहे कितना ही छाती पीट लो  फ़िर रामू को झुठलाते हुए कहा--- ऐसा नहीं हो सकता 

रामू---- तो क्यारामधारी चाचा झूठ बोलSubmit Comment

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