Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिजलियाँ टूट पड़ती हैं

 

बिजलियाँ टूट पड़ती हैं मेरे आशियाने पर,जलाने
कैसे कर मैं बचाऊँ प्राण, मौत ढूँढ़ रही बहाने

 

उठ गईं कैसी--कैसी सूरतें मेरे सामने से
किस-किस पर कहूँ तुमसे, बैठकर आँसू बहाने

 

जिंदगी भर न दीदा-ए-तर1 से थमे आँसू,जब-
तब याद उसकी आ जाती,लहू को पानी बनाने

 

उसकी निगाहें—शौक के साँचे में ढ़लने के बाद
उनके लबों ने सिखाया, हर्फ़2 से दास्तां बनाने

 

हर अदा सागर की तरह छलकती है उसकी
महफ़िल में जिक्र किया क्या,वह लगी शरमाने



1. गीली पलकें 2. सब्र

 

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