ब्रह्मचर्य
स्वामी विवेकानंद जी ने ब्रह्मचर्य की एक चर्चा-गोष्ठी में कहा---- ब्रह्मचर्य पालन से मन की एकाग्रता हासिल की जा सकती है और जब मन की एकाग्रता सिद्ध हो जाये , तो फिर अन्य शक्तियाँ अपने आप विकसित होने लगाती हैं | यूँ तो कईयों के लिए ब्रह्मचर्य पालन करना कठिन होता है , लेकिन , अगर वे भी विकारी विचारों को शुद्ध एवं पवित्र विचारों से काटने की कोशिश करें, तो कुछ हद तक उनको भी सफलता हासिल हो सकती है | ऐसे भी , स्त्रीमात्र को माता-पुत्री , अथवा बहन के रूप में देखने की आदत डाल लें, तो काम-वासना के विचार शांत हो जाते हैं |
भारतीय संस्कृति में माँ-बहन-पुत्री को अत्यंत पवित्र माना गया है | मन में ऐसी पवित्र भावना रखकर किसी स्त्री की तरफ नजर डालने से, विकार स्वयं ख़त्म हो जाता है | ब्रह्मचर्य पालन करने का कोई निर्धारित उम्र नहीं है | मनुष्य किसी भी उम्र और अवस्था में , विद्यार्थी , गृहस्थी अथवा साधु-सन्यासी के लिए तो ब्रह्मचर्य पालन , अत्यंत ही आवश्यक है ; क्योंकि मन का भटका हुआ इंसान कुछ हासिल नहीं कर सकता | सदाचारी और संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता हासिल करने की कूबत रख सकता है |
कहते हैं , एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी किसी काम से अमेरिका गए हुए थे , तब ब्रह्मचर्य पर चर्चा छिड़ने पर उन्होंने अपने जीवन-काल में घटित एक वाकया सुनाया----- उन्होंने बताया , कुछ दिन पहले एक भारतीय युवक मुझसे मिलने आया , जो दो साल से अमेरिका में रह रहा था | अपने परिवार से दूर वह ब्रह्मचर्य का पालन बहुत ही कठोरता से करता था | एक बार उसकी तबियत इतनी खराब हो गई , कि उसे इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ा | वहाँ उसे डॉक्टर ने बताया, ‘ ब्रह्मचर्य का पालन करना प्रकृति के नियम के विरुद्ध जाना होता है ; जिससे आदमी स्वस्थ नहीं रह सकता | यह शरीर और स्वास्थ्य ,दोनों के लिए नुकसानदेह है | डॉक्टर की सलाह से वह नौजवान इस उलझन में पड़ गया कि अब उसे क्या करना चाहिए ? कुछ निश्चित न कर पाने की दशा में वह मेरे पास, मुझसे मिलने आया | उसने मुझसे सारी बातें बताई | उसकी बातों को सुनने के बाद मैंने उससे कहा --- तुम उस देश के वासी हो, जिस देश को अध्यात्म के क्षेत्र में दुनिया विश्व-गुरु मानती है | क्या तुमको अपने देश के ऋषि -मुनियों पर विश्वास नहीं है ? जानते हो, हमारे ऋषि -मुनि ने ब्रह्मचर्य -रक्षा से ही परम पद की यात्रा करने में सफल हुए हैं ? हजारों वर्ष तक तपस्या करके ,सात्विक आहार करके ,गिर-कंदराओं में साधना करके ,प्रकृति के सूक्ष्म रहस्यों की खोज करनेवाले हमारे ऋषियों की समझ , सत्य की नीव पर आधारित है | उसमें विश्वास रखो, श्रद्धा रखो; मन को प्रबल बनाना हो तो पहले पवित्रता क्या चीज है ,इसे समझो | क्योंकि मन जितनी विकारी चीजों में घिरा रहेगा, वह उतना निर्बल हो जाता है | ब्रह्मचारी विकारी वासनाओं का नाश करता है | ब्रह्मचर्य पालन व्यक्ति को उत्तुंग शिखरों पर प्रस्थापित कर देता है |
एक बार स्वामी विवेकानंद जर्मनी गए थे, वहाँ उनकी मुलाक़ात कील यूनिवर्सिटी के प्रो० पोल ड्यूशन से हुई थी | पोल ड्यूशन स्वामी जी की अद्भुत यादास्त को देखकर दंग रह गये थे | इस रहस्य का कारण जब उन्होंने स्वामी जी से पूछा , तब स्वामी जी ने बताया----
ब्रह्मचर्य के पालन से मन की एकाग्रता हासिल की जा सकती है , और मन की एकाग्रता जब सिद्ध हो जाए, तब फिर अन्य शक्तियाँ स्वयं विकसित होने लगती हैं | भटकता मन जितना विकारी विचारों से घिरा रहता है, उतना निर्बल होता है | मन को सबल बनाए रखने के लिए मन को पवित्र विचारों से सरावोर रखना चाहिए | इससे मन का मनोबल बढ़ता है, इसलिए हमें ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए | ब्रह्मचर्य विकारी वासनाओं का नाश करता है और व्यक्ति को जटिल से जटिल परिस्थितियों में भी अपनी जगह से हिला नहीं पाता है | उन्होंने आगे बताया ---- ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है, जो ब्रह्म में विचरण करे ; अर्थात जो यह अनुभव करने लगे, ‘ जो मैं हूँ , वही ब्रह्म है’, और ‘जो ब्रह्म है, वही मैं हूँ’ | असल में वही ब्रम्हचर्य की आखिरी ऊँचाई पर पहुंचा हुआ परमात्मा स्वरूप है |
वैज्ञानिक हो, डॉक्टर हो, इंजिनियर हो , सबों को संयम की जरूरत है | संयमी होने से बल मिलता है; उसका उद्देश्य ऊँचा होता है; इतना ही नहीं , उसमें दुनिया को हिलाने का सामर्थ्य होता है | ब्रह्मचर्य पालन करना, तन से अधिक मन पर आधारित है | इसलिए मन पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है | उसे उड़ते परिंदे की तरह, इस डाली से उस डाली पर फुदकने के लिए, स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहिए |
ब्रह्मचर्य पालन के नियम ------------
(I) ब्रह्मचर्य तन से अधिक मन पर आधारित है , इसलिए मन को नियंत्रण में रखते हुए ऊँचे आदर्शों की इच्छा रखनी चाहिए |
(II) कान और नाक पर आँख का राज है, इसलिए बुरे दृश्य और अभद्र बातें सुनने में सावधानी बरतनी चाहिए |
(III) व्यस्तताहीन रहना , अर्थात खाली मस्तिष्क को चुपचाप बैठने नहीं देना चाहिए, बल्कि उस समय का सदुपयोग अच्छे काम या फिर भगवान के नाम लेने में बिताना कितना अच्छा है ?
(IV) एक कहावत है, ‘ जैसा खाओ अन्न , वैसा बने मन ; अर्थात सादा और पोस्टिक आहार ही लेना चाहिए, मगर मांस, मछली , अंडा आदि बिलकुल नहीं खाना चाहिए |
(V) रात का खाना, सोने के दो घंटे पहले लेना चाहिए |
(VI) सादे , सूती, खादी वस्त्र स्वास्थ्य के लिए अति लाभकारी होता है | चमकीले, सिंथेटिक वस्त्र से शारीर का ह्रास होता है |
(VII) सुबह जल्दी उठना चाहिए; देर तक विस्तार पर पड़े रहने से स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है |
(VIII) नशीली पदार्थों का उपयोग बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए |
(IX) प्रतिदिन प्रात: और शाम , व्यायाम और प्राणायाम नियमबद्ध तरीके से करते रहना चाहिए |
(X) अश्लील फोटो , इंटरनेट पर भद्दी सिनेमा आदि युवा-मन को एकाग्र रहने नहीं देता है | इसलिए इससे दूर रहना चाहिए |
कहा जाता है ---- जो ब्रह्मचारी होते हैं , वे लाखों की भीड़ में भी अलग अपना एक विशेष प्रभाव रखने के कारण,सबसे अलग से पहचाने जाते हैं | गुरुगोविंद सिंह जी ने कहा है--- ‘ इन्द्रिय संयम करो’; ब्रह्मचर्य से प्रसिद्धि और कृति दोनों मिलती है |
महात्मा बुद्ध को ब्रह्मचर्य पालन करने के बाद बुद्धत्व प्राप्त हुआ था | स्वामी विवेकानन्द , भीष्म पितामह, पवन-पुत्र हनुमान ,सबों ने अपने खानदान का नाम ब्रह्मचर्य रहकर ही आसमां तक रौशन किया | भीष्म पितामह ने कहा था ----तीनों लोकों का साम्राज्य त्याग करना , स्वर्ग का अधिकार छोड़ देना , इससे भी कोई वस्तु अगर उत्तम है तो छोड़ देना , मगर ब्रह्मचर्य भंग न करना , क्योंकि अशक्त शरीर, निराश मन, कुंठित बुद्धि किसी प्रकार पुरुषार्थ नहीं कर सकता , कारण, संयम ही शक्ति का स्रोत है |
भोजन के तत्व ही वीर्य बनकर शरीर में संचय होते हैं और उस संचित ,परिपक्व का ही स्फुरण शक्ति की अनुभूति है, इसलिए वीर्य को शक्ति ही नहीं प्राण भी कहा गया है | इसी महत्त्व को देखते हुए, हमारे ऋषि -मुनियों ने वीर्य रक्षा अर्थात ब्रह्मचर्य पालन पर अधिक जोर दिया |
ब्रह्मचर्य रहने के लिए वैज्ञानिक कारण ------
रेमंड वर्नाड , अपनी किताब ‘ Science of Regeneration” में लिखा है --- मनुष्य की सभी जातीय-वृतियों का सम्पूर्ण नियंत्रण अंत:स्त्रादि ग्रथियों के द्वारा होता है | अंग्रेजी में इसे ग्लेंड्स जातीय कहते हैं, जो रस उत्पन्न करती हैं | इसका प्रभुत्व अन्य ग्रन्थियों पर भी रहता है | हमारा यौवन हमारे खून में स्थित जातीय रसों (हार्मोंस) की प्रचूरता के आधार पर टिका रहता है , इसके कम होते ही हम वृद्धा अवस्था में प्रवेश करने लग जाते हैं ; अर्थात शरीर कमजोर और शिथिल पड़ने लग जाता है | जिन्होंने , जरुरत से अधिक अपना वीर्य खो दिया, वे चिडचिडा हो जाते हैं | उनके शारीर , मन में स्फूर्ति नहीं रहती है | वे शारिरिक सुस्ती और मानसिक थकान अनुभव करने लगते हैं | समय से पहले बुढ़ापा आना, नपुंसकता और विभिन्न प्रकार के नेत्र रोग आदि इसी तरल पदार्थ के अधिकाधिक नुकसान की वजह से होता है |
हिन्दू धर्म में, ब्रह्मचर्य को, तपों में सर्वोपरि तप कहा गया है | कहते हैं , ब्रह्मचर्य के पालन का फल चारो वेदों के उपदेश के सामान है | ब्रह्मचर्य अमरत्व को प्रदान करता है | वे मरकर भी अमर रहते हैं | अपने कर्मों के द्वारा भीष्म पितामह, स्वामी विवेकानन्द, हनुमान जी सभी ब्रह्मचर्य थे | यही कारण है, कि प्राचीन काल में हमारे पूर्वज आशीर्वाद स्वरुप कहते थे, वीर्यवान बनो |
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