चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
उश्शाक1पा रहे जुर्म की सजा,सोच मगरूर2रहे हम
मेरी जिल्लत ही, मेरी शराफ़त की दलील है
मेरे खुदा, इस गफ़लत में जरूर रहे हम
शिकवा उसकी ज़फ़ा3 का हमसे हो न सका, इस
दर्जा उसकी चाहत के नशे में चूर रहे हम
उसकी फ़ुरकत4 में रोयें, यह हमारी औकाद नहीं
पराये अपने हुए नहीं,अपनों से भी दूर रहे हम
नाम हमारा उसके चाहनेवालों में शामिल न रहा
उसके खूने-तमन्ना में शामिल जरूर रहे हम
1. प्रेमी 2.घमंडी 3. सितम 4. जुदाई
डा० श्रीमती तारा सिंह
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