Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम

 


चमन में रहकर भी, बहार से दूर रहे हम
उश्शाक1पा रहे जुर्म की सजा,सोच मगरूर2रहे हम

मेरी जिल्लत ही, मेरी शराफत की दलील है
मेरे खुदा, इस गफलत में जरूर रहे हम

शिकवा उसकी जफा3 का हमसे हो न सका, इस
दर्जा उसकी चाहत के नशे में चूर रहे हम

उसकी फुरकत4 में रोयें, यह हमारी औकाद नहीं
पराये अपने हुए नहीं,अपनों से भी दूर रहे हम

नाम हमारा उसके चाहनेवालों में शामिल न रहा
उसके खूने-तमन्ना में शामिल जरूर रहे हम


1. प्रेमी 2.घमंडी 3. सितम 4. जुदाई


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