चाँदनी
छोड़कर पार्थिव भोग विभूति
सूनेनभ के शतदल पर, नव
श्वेत कमल सीबैठी
कौनहै यह , रतिकी मूर्ति
जोअपने सौन्दर्यशिखा से
जनभू के मन में निर्मित कर
रही ,स्वर्ग की शोभा की आकृति
वन- उपवन में तरु-तृण अपना
भावोद्वेलित वक्ष खोलकर खड़ा
सोचरहा, किस भाँतिकरें
हमस्वागतउसकी , जो
धरती के पट को,नव क्षितिजों में
विस्तृत कर मानवहृदय में
प्राणों- साकर रही प्रतिष्ठित
भूनभ ज्योत्सना वारिधिमें डूब रहा
दुग्धधार सी, दिव्य चेतना कायह
कौनस्रोत , किन शिखरोंसे उतर रहा
जिसमें स्नान कर निखिल विश्व का प्राण
आनंदछंद साहो रहातरंगित
पाकरअंतर का ,अदृश्य प्रीति परस
जगजीवन के मनकी मूर्च्छा में
नईचेतना जाग गई
प्राणों के अवचेतन में भर गई ज्योति
कोमलता,कल्पलता सी बढ़ जन-जन के
पुलकोंमें होने लगीं प्रस्फ़ुटित
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY