Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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डरता हूँ हाले दिल सुनाने से

 

डरता  हूँ हाले दिल सुनाने से

उस बेवफ़ा  की  बात  बतानेसे


किस  तरह बरस  पड़ी  थीचाँदनी

रात  मेंरुख  से  परदा  हटाने से


मेरे  इश्क की किस्मत फ़ूट गई थी

डरता हूँ आज भी उसे आजमाने से


शाखे-गुल  का  आखिरी फ़ूल भी टूट

गयाएक बहार का , देरकर आने से


रोज नंगी सड़कों पर भटकती रात,उसे

किसने  रोका, पाँव में घुँघरू बंधाने से

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