Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देखा तो, हममें अब ताकते

 

 


देखा तो, हममें अब ताकते – दीदार नहीं
पर कैसे कहें , हममें हसरते दीदार नहीं

 

आसान नहीं,दुशवार है अब उसकी नजरों का
तीर सहना ,पर उतना भी दुशवार नहीं

 

कैसे भूल जायें, मेहंदी लगे उस हाथ को
जिसने, पैमाने वफ़ा से किया कभी वार नहीं

 

दिल से दिल आईने की तरह मिलता था
दरम्यां हम दोनों के होती थी,कोई दीवार नहीं

 

आज जिंदगी मेरी ,गम का एक दरिया है
हम वीरानों में खड़े हैं, घर बहार नहीं

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