देखो कहर मौसम ने कैसा ढाया है
घर कब्र बना, किस शैतां का साया है
बच्चे यतीम हो गये,दाने-दाने को तरस रहे
न माँ का आँचल है, न पिता का साया है
गाँव वीरान हो गया , भूत काडेरा है
नाले अर्श को किसने हिला आया है
सुना है फ़ितरत सोती जब,पत्ता भी नहीं
खड़कता , यह कहर किसने ढाया है
क्या हमारी तकदीर में आती जब रात
उसके भी हिज्र में आता अंधेरा का साया है
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