देशप्रेमी तरूण के प्रति मेरे हृदयोदगार
कौन तुम्हारी जीवनी को शब्दों में कर सकता कल्पित
तुम वीरपुत्र, प्रतिपल तुम भारत की गरिमा में परिवर्तित
समस्तीपुर तुम्हारा तात , तुम समस्तीपुर के दृढव्रत पुत्र
तुम्हारे सिर पर बरगद हस्त- सा गोपन कर, रखकर
तुम्हारा गाँव सदा तुम्हारे साथ खड़ा रहा, तुम्हारे
हृदय को देशप्रेम की मधु सुधा पिलाकर , तुम्हारे
मन प्राण को सदा करता रहा नव निर्मित
तुम्हारे हँसमुख छायाताप से गुंफित, तुम्हारे श्याम तन को
तुम्हारे गाँव के मिट्टी, वायु और पानी, दशरथ –सापिता
बनकर अपने मृदु बाँहों में , दोलित कर किया है तुमको
मुकुलित, तुम्हारी बाँहों से दो गज भी दूर नहीं क्षितिज
तुम वीरता का साहस लिए सदैव जन-गण के लिए खटते हो
मगर एक बार भी नहीं कहते , तुम हो क्लांत पीड़ित
करेह/गंडक के किनारे उन्मुक्त साँस लेकर तुमबड़ेहुए
विहगों के स्वर में, अखिल स्वतंत्रता सग्रामी के गीत सुने
अपने निभृत कक्ष में तैल -चित्र सा, उभरा भारत माँ की
छायांकित रूप देखकर तुम घबड़ा गये, तत्क्षण छोड़ अपने
जीवन की माया,तुम स्वतंत्रता संग्रामी के दल में कूद पड़े
ओ ! ज्योति तमसके अमृत पुत्र , तुम अतल धरा के
तम में कूदकर , पार्थिव युग के नव सेतू बने, धरा
मनुज के प्राणों के रुचि, स्वभाव, वैचित्र्यों को कर
नव संयोजित ,युग-युग के मानस संचय का समीकरण
कर तुम नव मानवता में वितरित कर दिये
घृणा , द्वेष , स्पर्धा, भय , संशय से मुक्त हो धरा
तुमने अखिल भारतीय संस्था के तरुण मंच पर
एक छत्र के नीचे शांति, साम्य, स्वातंत्र्य को
प्रतिष्ठित किया, तुम्हारी यह प्रीति- माल्य, लोक- जन
के सूत्रों में गूँथा रहे , मंजरित तन लोचन रहे
मेरी भी ईश्वर से यही प्रार्थना,यह तरूण मंच अमर रहे
जब तक मही पर गंगा बहे , आसमां में सूरज-चाँद रहे
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY