ढूँढ़ता था मैं जिसे बाज़ार में
वह मिला, सोया मुझे मज़ार में
कितना सकून था उसके मुख पर
मिला न था, कभी उसे बीमार में
कैसे कोई, विश्वास करे इतना सख़्त
काफ़िर झूलेगा कभी दीवार में
सभी जीवन-नद पार कर चले गये
मैं फ़ंसी रह गई मझधार में
जिसे चाँद मिला, मिला होगा, मुझे
टूटा तारा न मिला,उसके दरबार में
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