Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल लेकर न करो इनकार

 


दिल  लेकर  न  करो  इनकार, करीब  आ  जाओ

करीब  है  शबे  गमे  का  शहर, करीब  आ जाओ


मुझको  छूकर  मेरी  नस- नस  में  शरारें भर दो

याद  रह  जायेगी  ये  रात ,  करीब  आ  जाओ


विरह आग उगल रहे हैं बदन में अंगारे जल-जल के

हुए   जा   रहे   हैं   खाक ,  करीब  आ  जाओ


एक   मुद्दत   से    सोया  नहीं  मैं  रातों   को  

हर  वक्त  आती  है तुम्हारी याद,करीब आ जाओ


अपने  चेहरे  से  लहराते गेसुओं को हटा लो तुम

जान   ले   लेगा   ये  लट , करीब  आ  जाओ


दम    के   रूकते  ही  निकल  पड़ते  हैं  आँसू

नजर  परेशां , साँस रहती बे-ताब,करीब आ जाओ


गमे दिल किससे कहूँ, कोई गमख्वार नहीं मिलता

गमख्वारों  में तुम एक हो खास, करीब आ जाओ

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