दिल लेकर न करो इनकार, करीब आ जाओ
करीब है शबे गमे का शहर, करीब आ जाओ
मुझको छूकर मेरी नस- नस में शरारें भर दो
याद रह जायेगी ये रात , करीब आ जाओ
विरह आग उगल रहे हैं बदन में अंगारे जल-जल के
हुए जा रहे हैं खाक , करीब आ जाओ
एक मुद्दत से सोया नहीं मैं रातों को
हर वक्त आती है तुम्हारी याद,करीब आ जाओ
अपने चेहरे से लहराते गेसुओं को हटा लो तुम
जान ले लेगा ये लट , करीब आ जाओ
दम के रूकते ही निकल पड़ते हैं आँसू
नजर परेशां , साँस रहती बे-ताब,करीब आ जाओ
गमे दिल किससे कहूँ, कोई गमख्वार नहीं मिलता
गमख्वारों में तुम एक हो खास, करीब आ जाओ
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