Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल में दिल बनकर रहता हूँ

 

दिल में दिल बनकर रहता हूँ,फ़िर भी कहती ,तुम्हारा

न  कोई  अपना  मुकाम,तुम गुजरा हुआ जमाना हो


तुममें जमाने- रफ़्तार की लज्जत ओ आरजू-ए-जहान1

की  चाहत  नहीं,  तुम एक  उलझा हुआ फ़साना हो


तुम  अफ़सुदगी2   हो,  तुममें  सैर- बहार  ओ  बाग

की  चाह नहीं, तुम अपने निगाहे-शौक का दीवाना हो


तुमने  मेरी  तरफ़  देखा, मेरे  जिगर  को नहीं देखा

तुम जन्मों  का  पहचाना होकर भी एक अनजाना हो


इस कदर भी फ़िरेगा रंगे-जमाना3,मालूम न था आइने 

को क्या याद दिलाना ,कि तुम आशिक मेरा पुराना हो


1.सुंदर दुनिया  2. ऐतिहासिक  3. संसार की दशा

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