Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो

 

दिले  बेताब  को  जुल्फ़ों  में उलझाया न करो

यूँ  इश्क  की  आग  को  सुलगाया  न  करो


आता  नहीं  पलट के जमाना शबाब का, जोशे-

इश्क  में  वादा-ए-मर्द  को  आजमाया न करो


खुद  अपना फ़ैसला, कभी-कभी घातक है होता

तुम राह में दोपट्टे को सीने से सरकाया न करो


लहर  उठने  के पहले सौंप दो सफ़ीना-ए-हयात

मेरे हाथों में,तुम दिल पे अब्रे-गम लाया न करो


हाले  दिलबेताब जो कहा जाये तो हमसे कहो 

किसी  गैर  से  राजे - दिल  बताया  न  करो

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ