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Dr. Srimati Tara Singh
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दीपावली

 

दीपावली


भारत आरम्भकाल से ही पर्वों का देश कहा जाता रहा है । यहाँ हर महीने ,हर दिन ,कोई न कोई पर्व रहता है, मगर इनमें कुछ पर्व ऐसे हैं जो भूलने योग्य नहीं हैं । कारण इनसे हमारी धार्मिक आस्था जुड़ी होती है , जो कि हमारे जीवन में नाना प्रकार की प्रेरणाओं का स्रोत लेकर आता है, कुछ तो हमारे राष्ट्रीय पर्व होते हैं ; जिसे हम पूरा देश मिलकर एक साथ मनाते हैं ,जो कि जाति और सम्प्रदाय से ऊपर है , जैसे 26 जनवरी, 15 अगस्त, गाँधी जयन्ती आदि । 

            राष्ट्रीय पर्व हमारी राष्ट्रीय एकता और समृद्धि के प्रतीक हैं , लेकिन जातीय पर्व,किसी एक समुदाय ,एक धर्म  का होता है । दीपावली हिन्दुओं का प्रमुख त्योहारों में एक है जिसे हम प्रकाश और उज्ज्वलता का प्रतीक मानते हैं । यह पर्व साल में एक बार कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है । यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व है , जो अंधकार के मध्य, प्रकाश की उपासना होती है । कहते हैं, जब घोरतम की चारो ओर छाया हो, तभी प्रकाश की आवश्यकता होती है । भला अमावस की घोर काली रात से बढ़कर और कौन सी रात अंधेरी हो सकती है , अत: उसी रात दीपावली मनाई जाती है । उस अंधेरी रात में ,कोटि-कोटि दीपमालाएँ जगमगाकर, नन्हीं बत्तियों के रूप में, ललकार-ललकार कर धरती पर पसरे अंधेरे को दूर करती है । कहते हैं, यह पर्व त्रेता युग से ही भारतवासी (हिन्दू) मनाते आ रहे हैं । आज से तीन युग पहले, जब भगवान राम, आदमी के रूप में धरती पर अवतरित हुए, जिनकी गौरव गाथा हमारे इतिहास को उज्ज्वल किया ; जिसने अपने प्रताप से महाकाल के रथ को भी मोड़ दिया था,जिसके दिग्विजय के अश्व को कोई नहीं रोक पाया था ,उस राष्ट्र –पुरुष राम का अयोध्या में जिस दिन राज्याभिषेक हुआ था, वह दिन दीपावली का ही दिन था । उस दिन हर अयोध्यावासी अपने घर –आँगन को दीपों से सजाकर अपनी खुशी का इजहार किया था । 

               किंवदंती यह भी है कि राम अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीताजी के साथ विजयी होकर दीपावली के दिन अयोध्या लौटे थे, उनकी विजय अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य और अग्यानांधकार पर ग्यान के आलोक की विजय थी । दूसरा किंवदन्ती यह भी है कि द्वापर युग में महाराजा युधिष्ठिर, अपना राजसूय यग्य इसी दीपावली के दिन पूरा किये थे । कहते हैं, जैन मत के प्रवर्त्तक भगवान महावीर ,इसी दीपावली के दिन अपना देहत्याग किये थे । सत्यार्थ का प्रकाश करनेवाले, महर्षि दयानंद दीपावली के दिन ही निर्माण प्राप्त किये थे । इन समस्त पौराणिक और आधुनिक ऐतिहासिक स्मृतियों के कारण दीपावली एक राष्ट्रीय त्योहार ही नहीं,त्योहारों का पुण्यतीर्थ भी है ।

              दीपावली का एक और माहात्म्य भी है, वह है ऋतु का परिवर्तन होना, वर्षा ऋतु का जाना और शरद ऋतु का आगमन होना । वर्षा ऋतु में नाना प्रकार के मच्छड़-मक्खियाँ, हानिकर कीड़े-मकोड़ों का जनम होता है,जो आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरा पैदा करता है । इनसे मलिन हुए घर को दीपावली के बहाने लोग साज-सफ़ाई,रंगाई-पुताई करवाते हैं,जिससे ये सभी कीड़े नष्ट हो जाते हैं । हिन्दू-धर्म कहता है, जो घर साफ़ और स्वच्छ नहीं रहता, वहाँ लक्ष्मी नहीं ठहरती । अत: दीपावली के आते ही घर की साफ़-सफ़ाई के लिए लोगों में होड़ सी लग जाती है । दूकानें मिठाइयाँ, खिलौने, फ़ुलझड़ियाँ और पटाखों से भर जाती हैं । भारतीय परम्परा के अनुसार, इसी रोज रोजगारी-व्यापारी अपने लाभ-नुकसान का हिसाब-किताब करके,नये वर्ष की योजनाएँ बनाते हैं । इस  तरह दीपावली का त्योहार धार्मिक-सामाजिक, व्यवहारिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो जाता है । 

               दूसरी ओर ऐसे अवसर पर कुछ लोग अमानवीय/ असामाजिक कार्य भी लोग कर बैठते हैं, जैसे जुआ खेलना, शराब पीना; दोनों ही में धन की बर्बादी होती है । देखते ही देखते धन्ना सेठ ,कौड़ीमल हो जाते हैं । ऐसे अग्यानियों के लिए दीपावली का असली महत्व बस यहीं तक रह जाता है,जब कि उन्हें भी पता होता है ,जुआ ,प्रकाश का नहीं ,अंधकार का सूचक है ।

            दीपावली केवल भारत में रह रहे, भारतीय ही नहीं मनाते, बल्कि विदेशों में भी भारतीय इसे धूमधाम से मनाते हैं । नेपाल में तो यह पर्व राजकीय पर्व के रूप में पाँच दिनों तक मनाया जाता है । वर्मा के लोग ,दीपावली को ’तंडीजू’ कहते हैं । चीन में इसे ’नाईन हुआ’ कहते हैं । यूरोप में भी इस पर्व को धूमधाम से आठ फ़रवरी को गिरिजाघरों में दीप जलाकर मनाते हैं । जीवन में प्रकाश की कामना किसे नहीं रहती ; इसलिए धीरे-धीरे यह पर्व अंतर्राष्ट्रीय त्योहार बन गया है ।


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