Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दुनिया है एक धर्मशाला

 

मेरे  देश  के  ठीकेदारो , मत  हँसो    इन    गरीबों  पर
ऐसा   न  हो   एक    दिन ,  ये   गरीब  हँसें   तुम  पर
ये   शूट- बूट , ये   महल – चौबारे , चिड़ियों  का  होगा डेरा
तिजोरी      की    चाभी  चुरा   ले       जायेगा    लुटेरा
तुम्हारे घर भी मातम होगा, तुम्हारा भी निकलेगा दिवाला
दाने -दाने  को  तरसेगा  तुम्हारे  आँगन  में  खेलने  वाला
मत गुमान कर इस ठाठ -बाट पर यहाँ दो दिन है बसेरा
बूँद  भर  पानी  से  गल  जायेगा , यह नहीं है टिकनेवाला
ये      घोड़े , ये     हाथी , पलंग    सोने - चाँदी      वाला
सब   धरा   रह   जायेगा   यहीं ,   तुम   जायेगा      अकेला
हम   सभी  यहाँ  मुसाफिर  हैं , दुनिया  है  एक   धर्मशाला
आया  है  सो  जायेगा , यहाँ  दो  दिन  का  है       मेला
राजा   हो   या  रंक – भिखारी , सब  का  आयेगा बुलावा
यही   नियति  का   नियम  है ,  यह  नहीं  बदलने    वाला

 

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