दूर-दूर रहती हो क्यों ,मेरे करीब आओ
कुछ मेरे दिल की सुनो,कुछ अपनी सुनाओ
बीते दिनों की यादों को, हो जाने दो ताजा
बुझे इश्क के चिराग को फ़िर से जलाओ
बढ़ती जा रही है बेखुदी मेरे दिल की, अपने
दिल की बात, आँखों के इशारे बताओ
रात चुप है, फ़ज़ा है सहमी-सहमी,तुम अपने
मुखड़े को ज़ुल्फ़ के साये में न छुपाओ
इस दुनिया के अलावा भी,एक और दुनिया है
मुहब्बत की, हम वहीं जा रहे, तुम भी आओ
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