डा० श्रीमती तारा सिंह
एक बेवफ़ा ,नज़र से दिल में उतर गई
हाय ! बिन बताये यह क्या कर गई
मैं एक मुसाफ़िर था गुमज़दा1, लगाकर
मुझ पर खून का इलज़ाम,बाद मुकर गई
मैने कब कहा उसे ठहरने, अपने घर
वह तो खुद अपने इरादे पे ठहर गई
संग लाई थी जो अपनी गुलाबी आँखों पर
तुरबत2 ,जाते- जाते मेरे घर धर गई
मैं जहाँ, वहाँ मुझे अपनी खबर नहीं,जाने
उस बेवफ़ा को कैसे यह खबर गई
1.राह भूला 2. कब्र
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