Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक दूजे के दिल की गहराइयाँ

 

कुछ तुम्हारी गलतियाँ थींकुछ  मेरी थी   नादानियाँ

जो  छू न सके हम, एक दूजे के दिल की गहराइयाँ


चलते  रहे  हम  साथ-साथ, एक  दूजे  से  होकर

अलग -अलग. ज्यों  चलती, रेल  की  दो  पटरियाँ


प्यार  का ईनाम  कुछ ऐसा  मिलेगा, पता कहाँ था

जिंदगी   का  अंग   बनकर  रह  गई  तनहाइयाँ


अब आगे मत  पुछना, रात  है तुम पर क्या गुजरी

जो, तुम्हारी आस्तीन पर दीख रहा गमोँ की सुर्खियाँ


क्या  आया  था  कोई  शामे  इंतजार  में तुम्हारी

जो  दे गया  दिल में दर्द, आँखोँ को कुछ कहानियाँ


तारा, यह  वो  मोड़ है  जिंदगी  का, जहाँ  देता न

साथ  रहगुज़र  भी, छोड़ जाती अपनी भी परछाइयाँ

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