आज सुबह अखबार में एक खबर पढ़ा
मृत्ति और आकाश को जोड़नेवाला
एक कवि अपने जीवन- अरमान की
गठरी को धरा पर छोड़,खुद पंचभूत की
रचना में एक तत्व बनकर रमण करने
कल रात ,अनंत यात्रा पर निकल गया
पास – पड़ोस, परिजन – पुरजन, सभी
चिंतित उदास घेरे खड़े, बोल रहे
अब धरा पर आने वाले,नव अभ्यागत
के स्वागत में, मंत्रोच्चार कौन करेगा
कौन अब खुद की गोद में आग
लगाकर, दुश्मन का कुल-वंश जोगेगा
मानव उर की आशा – आकांक्षा को
स्वरों में भरकर, अब झंकृत कौन करेगा
पाप-पुण्य,स्वर्ग-नरक औ,धर्म-अधर्म क्या
होती है, उसकी अकथ कथा सरिता के
सूने तट पर ,बैठकर कौन सुनायेगा
कौन कहेगा अब इस मरणोन्मुख जगत से
देखो काल का सूचक बनकर, अग्नि-स्तंभ
शैल सा मनुज को निगलने, बाहर आ रहा
मूक धरा के गर्भ से,तभी स्रोतहीन पुलिनों सी
यहाँ की रीति-नीतियाँ हैं, नीरस उदास पड़ी
मनुज मन के भू की उर्वरता को सींच
नहीं पा रही, सब कुछ हैं मिटे जा रहे
चाँद ,सूरज,तारे कोई भी तो ठहर नहीं पा रहे
इसलिए अम्बर से माँगकर धरा पर
कौन अपने संग क्या - क्या लाया
किसको चाँद मिला ,किसके हिस्से टूटा तारा
जीवन मन को मथ रही,इस अनंत जिग्यासा को
छोड़ो और जिस मिट्टी पर खड़े हो,उसकी सोचो
हमने माना ,इन प्रश्नों पर अधिकार है तुम्हारा
मगर, मत भूलो , क्षणिक है यह संसार हमारा
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