Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक कवि की मृत्यु

 

एक कवि की मृत्यु


आजसुबह अखबार में एक खबर पढ़ा

मृत्तिऔर  आकाश  कोजोड़नेवाला

एककवि  अपने  जीवन- अरमान की

गठरी को धरा पर छोड़,खुद पंचभूत की

रचनामें एक तत्व बनकर रमण करने

कलरात ,अनंत यात्रा पर निकल गया

पास - पड़ोस, परिजन - पुरजन, सभी

चिंतित   उदासघेरे  खड़े, बोल  रहे

अब धरा पर आने वाले,नव अभ्यागत

के  स्वागत में, मंत्रोच्चार कौन करेगा

कौन  अब  खुदकी  गोद  में आग

लगाकर, दुश्मनका कुल-वंश जोगेगा

मानवउर  की  आशा - आकांक्षा  को

स्वरों में भरकर, अब झंकृत कौन करेगा

पाप-पुण्य,स्वर्ग-नरक औ,धर्म-अधर्म क्या

होतीहै, उसकीअकथ कथा सरिता के 

सूनेतट  पर ,बैठकरकौन  सुनायेगा

कौनकहेगा  अब  इस मरणोन्मुख जगत से

देखो  काल  कासूचक बनकर, अग्नि-स्तंभ

शैल  सा  मनुजको निगलने, बाहर आ रहा 

मूक धरा के गर्भ से,तभी स्रोतहीन पुलिनों सी 

यहाँ  की  रीति-नीतियाँ हैं, नीरस उदास पड़ी

मनुज  मन  केभू  की  उर्वरताको सींच

नहीं  पा  रही, सब  कुछहै  मिटा जा रहा




इसलिएअम्बर से माँगकरधरा पर

कौन अपनेसंगक्या -  क्या लाया

किसकोचाँद  मिला ,किसकेहिस्से टूटा तारा

जीवन मन को मथ रही,इस अनंत जिग्यासा को 

छोड़ो और  जिस मिट्टी पर खड़े हो,उसकी सोचो

हमनेमाना ,इन प्रश्नों पर अधिकार है तुम्हारा

मगर, मत  भूलो , क्षणिक है यह संसार हमारा

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