Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

फ़िर से आयेगी वह सुबह देखना

 

फ़िर से  आयेगी   वह    सुबह    देखना

धरती  आसमां  में   होगी   सुलह  देखना


अभी  बादल  है, आसमां  को  ढँका   हुआ

कल  चाँद–तारों से, सूरज का  जिरह देखना


कौन  कहता, जगत  के  बाहर  रहती  नहीं 

ज़ुदाई,  दिन  को  रात  का  विरह  देखना


टूटकर   तारे  आ   गिरते   हैं  जमीं  पर

होते   हैं  तारों   के   भी ,कलह   देखना


गुंचे   में  बंद  सपनों  का   फ़ूल   देखना

छ्लकेगा  एक दिन सागर भी, कदह  देखना

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ