गमें जिंदगी से घबड़ाकर चला आता हूँ
न पाकर तुझे बड़बड़ाकर चला आता हूँ
लोग कहते ,पागल- दीवाना ,सिरफ़िरा मुझको
पत्थर से प्यार जताकर चला आता हूँ
मज़लिसे –यार में तो जगह न मिली मुझको
मज़लिसे दीवार से हाल बताकर चला आता हूँ
जब देखता हूँ गैर को तुम्हारे पास बैठा
जिंदगी ,फ़िर मिलूँगा बताकर चला जाता हूँ
डा० श्रीमती तारा सिंह
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