गंगा
पवित्र पावनी, पाप- नाशिनी गंगा, के जन्म से दो कहानियाँ जुड़ी हुई हैं : शास्त्रानुसार ---- (i) इस प्रफ़ुल्लित सुंदरी गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ । मान्यता है, कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने विष्णु का चरण धोया, और उस जल को अपने कमंडल में भर लिया ; इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ ।
(ii) दूसरा सम्बंध भगवान शिव से है ; कहते हैं , जिन्होंने संगीत के दुरुपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया, जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया, तो भगवान विष्णु के शरीर से पसीना बहने लगा, जिसे ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में भर लिया । इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ, और वह ब्रह्मा के साथ, उनके संरक्षण में, स्वर्ग में रहने लगी ।
गंगा को धरती पर किसने उतारा------
वाल्मीकि रामायण में ऋषि विश्वामित्र ने रामचन्द्र जी को कथा सुनाई , कि ’ राम तुम्हारी ही नगरी अयोध्यापुरी में बहुत पहले एक राजा थे, नाम था सगर । वे पुत्रहीन थे, उनकी दो पटरानियाँ थीं, एक का नाम था केशिनी, जो विदर्भ प्रांत के राजा की पुत्री थी । केशिनी रूपमती, धर्मात्मा और सत्यपरायण स्त्री थी । सगर की दूसरी रानी, सुमति थी , जो राजा अरिष्टनेमि की कन्या थी । सगर ने अपने दोनों रानियों के साथ , कठोर तपस्या कर भृगु ऋषि को प्रसन्न कर उनसे पुत्र प्राप्ति का वरदान प्राप्त किया । ऋषि ने राजा सगर को बताया , कि दोनों रानियों में से एक को, केवल एक पुत्र होगा, जो वंश को बढ़ायेगा और दूसरी को साठ हजार पुत्र प्राप्त होंगे । कौन सी रानी कितने पुत्र चाहती हैं, इसका निर्णय आपस में स्वयं कर लें । किशिनी ने वंश बढाने वाला , एक पुत्र की कामना की, मगर गरुड़ की भगिनी सुमति, साठ हजार बलिष्ठ पुत्रों की प्राप्ति की कामना की । कुछ काल बाद रानी केशिनी ने असमज्ज नामक पुत्र को जनम दी और रानी सुमति के गर्भ से एक तंबू निकला, जिसे फ़ोड़ने पर साठ हजार छोटे-छोटे पुत्र निकले । उन सबों का लालन-पोषण घी के घड़े में रखकर किया गया । कालचक्र बीता, सभी साठ हजार पुत्र बड़े और युवा हो गये । सगर का ज्येष्ठ पुत्र असमज्ज बड़ा ही दुराचारी था, वह नगर के बच्चों को सरयु में डुबो-डुबोकर मार डालता था । ऐसा कर उसे बहुत आनंद मिलता था । एक दिन इस दुराचारी पुत्र से दुखी होकर, राजा सगर ने उसे अपने राज्य से निष्कासित कर दिया ।असमज्ज को अंशुमान नाम का एक पुत्र था, जो अपने पिता के ठीक उलट, दयालु, सदाचारी और पराक्रमी था । एक बार राजा सगर के मन में अश्वमेध यग्य करने का विचार आया और इस विचार को कार्यपरिणति कर दिया । आगे ऋषि ने <
LEAVE A REPLY