गैर की जिक्रे-वफ़ा1 पर जलता दिल, वो क्या जाने
वो तो हमारी हर बात पर कहती खुदा जाने
किस-किस का न दिल खूँ हुआ होगा जब उसने
अपने सीने से दुपट्टे को सरकाया होगा, वो क्या जाने
हम तो बेखुद रहे उसकी याद में, वह कब आई
कब मिली , कब चली गई, हम क्या जाने
नींद आई नहीं रात तड़प-तड़प कर बीती उसके
इंतजार में, इनकार होता है क्या, वो क्या जाने
कभी लड़ना,कभी मिलना,कभी दिल तोड़कर चल देना
उस शोख-तबीयत2 को, देवता ना जाना,हम क्या जाने
1. दूसरों की अच्छाई 2.शरारती ढंग
डा० श्रीमती तारा सिंह
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