Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हद से गुजरने को जी चाहता है

 

हद से गुजरने  को   जी  चाहता   है

उसके सीने से लगने को जी चाहता है


कर  खुदा  के  आगे गुनाह कबूल

अपना ,संवरने को  जी  चाहता है


बेरंग नक्शे मोहब्बत में

कोई  रंग  भरने को  जी चाहता है


मुद्दतों  से रूठकर जा बैठी है जो दूर 

उसके  पास  रहने  को जी चाहता है


उसकी  झील –सी  आँखों से उतरकर 

उसके दिल में ठहरने को जी चाहता है

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