Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हम जख्में तमन्ना धो आये हैं

 

हम   जख्में   तमन्ना  धो  आये  हैं

अपनी  बेवशी  के  आँसू  रो  आये हैं


उम्मीदों   का  सफ़ीना1  रखता  कहाँ

उसे  बहरे  गम  में   डुबो  आये  हैं


शम-अ  की तरह रात कटती सूली पर 

अपने   अजीज   को  खो  आये  हैं


खुदा  रखे  जिंदगी  उसकी  सलामत

हम  उसकी  राह  में फ़ूल बो आये हैं


कब मुकद्दर दिया साथ,हम तो खयाले-

सुबह2 में अपना आस्तीं भिंगो आये हैं



  1. कश्ती  2. सुबह की चिंता

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