Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हम जिन्हें अपना देवता मानकर पूजते रहे

 


हम जिन्हें अपना देवता मानकर पूजते रहे

वे  हमारी  गिनती  बेगानों  में करते रहे


सुनकर  मेरी  बदकिस्मती  के  अफ़साने1 

बरसों    तक    वेमजालूटते  रहे


थी  गैर  से  उनको  मेहरो-मुहब्बत2 ,हम 

फ़कत3  उनकी  मुहब्बत के दावे करते रहे


करना  था  अपने  ही  दिल  से दिल्लगी

खुदा  की चाहत में,हम बुतों4से मिलते रहे


वे  रोज  अदा-अदा  से तलवारें खींचते रहे

हम  रोज   टुकड़े - टुकड़े  में  बँटते  रहे



     1.कहानियाँ 2. प्रणय सचेतन 3.सिर्फ़ 4.मूर्तियों


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