हम जिन्हें अपना देवता मानकर पूजते रहे
वे हमारी गिनती बेगानों में करते रहे
सुनकर मेरी बदकिस्मती के अफ़साने1
बरसों तक वेमजालूटते रहे
थी गैर से उनको मेहरो-मुहब्बत2 ,हम
फ़कत3 उनकी मुहब्बत के दावे करते रहे
करना था अपने ही दिल से दिल्लगी
खुदा की चाहत में,हम बुतों4से मिलते रहे
वे रोज अदा-अदा से तलवारें खींचते रहे
हम रोज टुकड़े - टुकड़े में बँटते रहे
1.कहानियाँ 2. प्रणय सचेतन 3.सिर्फ़ 4.मूर्तियों
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