हो जिसकी मुहब्बत, फ़कत मस्ती-ए किरदार
उसने कैसे कहा, तू नहीं वफ़ादार,तू नहीं मेरा दिलदार
मुज़रिम वह खुदा का था, बुतों से था उसको आर
तुमने क्यों माना, उस संगदिल को, अपना गुनहगार
उसके शयन-कक्ष में अंकित, मौत की नक्शागिरी चीख-
चीखकर कह रही, उसका विरह मन था कितना बेज़ार
लगता तूने अपने जिगर से छोड़कर, फ़िर वही तीर
उसकी तमन्ना के सीने को किया बेदार
सर से पाँव तलक गुलशने-चमन तुम्हारा, किसके
लिए सँभाल रखा है यह तुमने निहकते गुलज़ार2
उम्र गुजरती जा रही, शब-ए-वस्ल2 के इन्तजार में
कोई कैसे माने, तुम नहीं पिया- मिलन को बेकरार
- बाग की खुशबू 2.मिलन की रात
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