Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हो जिसकी मुहब्बत, फ़कत मस्ती-ए किरदार

 

हो   जिसकी   मुहब्बत,  फ़कत  मस्ती-ए  किरदार

उसने कैसे कहा, तू नहीं वफ़ादार,तू नहीं मेरा दिलदार


मुज़रिम  वह  खुदा  का था, बुतों से था उसको आर

तुमने  क्यों माना, उस संगदिल को, अपना गुनहगार


उसके शयन-कक्ष में अंकित, मौत की नक्शागिरी चीख-

चीखकर कह रही, उसका विरह मन था कितना बेज़ार


लगता  तूने  अपने जिगर से छोड़कर, फ़िर वही तीर

उसकी   तमन्ना   के   सीने   को   किया  बेदार


सर  से  पाँव  तलक गुलशने-चमन तुम्हारा, किसके

लिए  सँभाल  रखा  है  यह तुमने निहकते गुलज़ार2


उम्र  गुजरती  जा रही, शब-ए-वस्ल2 के इन्तजार में

कोई  कैसे  माने, तुम नहीं पिया- मिलन को बेकरार



  1. बाग की खुशबू   2.मिलन की रात

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