होली
मिटेधरा से ईर्ष्या, द्वेष, अनाचार, व्यभिचार
जिंदा रहे जगत में , मानव के सुख हेतु
प्रह्लाद का प्रतिरूप बन कर,प्रेम,प्रीति और प्यार
बहती रहे,धरा पर नव स्फ़ूर्ति का शीतल बयार
भीगता रहे, अंबर-ज़मीं, उड़ता रहे लाल, नीला
पीला , हरा , बैंगनी , रंग - बिरंगा गुलाल
मनुज होकर मनुज के लिए महा मरण का
श्मशान न करे कभी कोई तैयार
रूखापन के सूखे पत्र झड़ते रहे
दुश्मन,दुश्मनी को भुलाकर गले मिलते रहे
जिससे , मनुष्यत्व का पद्म, जो जीवन
कंदर्प मेंहै खिला , उसकी सुगंधित
पंखुड़ियों से भू– रज, सुरभित होता रहे
खुशियों का ढाक- नगाड़ा बजता रहे
लोग झूमे, नाचे ,गाये, आनंद मनाये,कहे
देखो ! धरा पर उतरी है वसंत बहार
लोग मना रहे हैं, होली का त्योहार
रूप, रस, मधु गंध भरे लहरों के
टकराने से , ध्वनि में उठता रहे गुंजार
सुषमा की खुली पंखुड़ियाँ, स्पर्शों का दल
बन कर, भावों के मोहित पुलिनों पर
छाया - प्रकाश बन करता रहे विहार
चेतना के जल में खिला रहे,कमल साकार
त्रिभुवन के नयन चित्र – सी, जगती के
नेपथ्य भूमि से निकल,दिवा की उज्ज्वल
ज्योति बन होली आती रहेबार-बार
थके चरणों में उत्सुकता भरती रहे
भू –रज में लिपटा ,श्री शुभ्र धूप का टुकड़ा
रंग -बिरंगे रंगों से रँगे दीखे लाल -लाल
देख अचम्भित, आसमां कहे, देखो लगता
सृष्टि ने निज सुमन सौरभ की निधियों का
मुख –पट ,दिया है, धरा की ओर खोल
चारो तरफ़ लोग खुशियाँ मना रहे
एकदूजे सेगले मिल रहे. मचा रहे शोर
फ़ूटे डाली पर कोमलपल्लव, पी गा रही
पंचम सुर में कह रही ,डाली की लड़ियों को
मंजरियों का मुकुट पहनाने आया है
वसंत बहार,लोग मना रहे होली का त्योहार
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