होली
------ डा० श्रीमती तारा सिंह,नवी मुम्बई
वसंत की रंगता का प्रतीक , होली प्रत्येक साल फ़ाल्गुन महीने की पूर्णमासी को मनाया जाता है । उज्ज्वल वासंती वातावरण के कारण धरती शीतल –मन्द सुगंध से सुगंधित हो , धरती से आसमां तक को गमकाती हुई, एक उद्यान सी लगती है । प्रकृति के इन नये उमंगों , नयी तरंगों से मानव प्राण में नया रुधिर दौड़ने लगता है । आम्र के पेड़ों में मंजर भर आता है, जो वातावरण को चंदन वन में बदल देता है ।
हर भारतीय, चाहे वह देश में हो या देश के बाहर परदेश में, होली की प्रतीक्षा बड़ी व्यग्रता से करता है । लोग गाँव से शहर तक होली के कई दिन पहले से ही तैयारियों में जुट जाते हैं । ढ़ोलक, झाँझ , करतास व मजीरों के संगीत में मस्त , गली-गली में घूमती टोलियाँ फ़ाग व होली के गीत गातीं, मस्ती में खो जाती हैं । होली में केवल यौवन की फ़ुहारें होती हैं । इस त्योहार का केवल यही एक पक्ष है, ऐसा नहीं है । इससे जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएँ हैं ; जिसके कारण इस त्योहार को हिन्दू समाज में धार्मिक दृष्टि से भी, बहुत मान्यता मिली है ।
इतिहासकारों का कहना है कि होली के पर्व का प्रचलन, पहले आर्यों में भी था , लेकिन इस त्योहार को अधिकतर पूर्वी भारत में ही मनाया जाता है । इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है । नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रन्थों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है । आज भी विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में इसका उल्लेख किया गया है ।
सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक ’अलबरूनी’ ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होली के त्योहार के बारे में लिखा है, भारत में हिन्दू के साथ
मुसलमान भी इस पर्व को मनाते थे । इसके ऐतिहासिक प्रमाण में उन्होंने लिखा है, अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ
( अलवर के संग्रहालय में लगे एक चित्र से ) यह साबित होता है, वहाँ एक दूजे के साथ होली खेलते दिखाया गया है । अंतिम मुगल बादशाह, बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में भी यह बात प्रसिद्ध है कि होली के दिन उनके दरवार के मंत्री, उन्हें रंग लगाने जाते थे ।
हिन्दुओं के इस प्राचीन त्योहार , होली से अनेक कथाएँ जुड़ी हुई हैं । इनमें सबसे प्रसिद्ध है, प्रह्लाद की कहानी । प्रह्लाद , राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र था । पिता कट्टर नास्तिक थे, तो पुत्र कट्टर आस्तिक । कहते हैं, उस समय किसी का मजाल नहीं था,कि ईश्वर भक्ति करे । हिरण्यकश्यप को भगवान का दर्जा मिला हुआ था । पुत्र प्रह्लाद को भी उन्होंने बहुत समझाया, कि तुम मेरे नाम की पूजा करो ; मैं ही तुम्हारा भगवान हूँ । अन्यथा, इसका दंड बहुत बुरा होगा ; लेकिन प्रह्लाद ने पिता के आदेश को हर बार नकार दिया । उसकी इस उद्दंडता से क्रुद्ध होकर, पिता ने उसे अनेक कठोर दंड दिये । ; बावजूद प्रह्लाद ने भक्ति की राह नहीं छॊड़ी । हिरण्यकश्यप की बहन, होलिका जिसको यह वरदान प्राप्त था कि उसे आग भस्म नहीं कर सकता । हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया, होलिका बड़े भाई का हुक्म तामिल करती हुई , प्रह्लाद को गोद में लेकर Submit Comment