Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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होती रात लम्बी गम की

 


होती रात  लम्बी गम कीकौन  नहीं जानता

मगर होती सुबह हर रात की,कौन नहीं जानता


दुनिया  में    मौत  अपनी  कर्म अपना

है जिंदगी  यह  उधार कीकौन  नहीं जानता


खत्म  हो जायेगा एक  दिन,सब शोरे-जुनूं जब

लड़ी  टूटेगी  साँसों  की,  कौन  नहीं  जानता


आयेगा जब झोंका  हवा  काखुद--खुद गुम 

हो  जायेगी रोशनी  दीये की,कौन नहीं जानता


तुम पर बरसा है,महताब का नूर,खुदा भी खाता

कसम  तुम्हारी  दोस्ती कीकौन  नहीं जानता

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