होती रात लम्बी गम की, कौन नहीं जानता
मगर होती सुबह हर रात की,कौन नहीं जानता
दुनिया में न मौत अपनी, न कर्म अपना
है जिंदगी यह उधार की, कौन नहीं जानता
खत्म हो जायेगा एक दिन,सब शोरे-जुनूं जब
लड़ी टूटेगी साँसों की, कौन नहीं जानता
आयेगा जब झोंका हवा का, खुद-ब-खुद गुम
हो जायेगी रोशनी दीये की,कौन नहीं जानता
तुम पर बरसा है,महताब का नूर,खुदा भी खाता
कसम तुम्हारी दोस्ती की, कौन नहीं जानता
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