Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हम तो चले उधर, जिधर मेरे रहबर चले

 


हम तो चले उधर, जिधर मेरे रहबर चले
है फ़ितरत1का इशारा, हर शब2 का सहर3चले

 

सरे महफ़िल में हमीं से करना था परदा, जो
गैर के दामन से वे, अपना मुँह ढँककर चले

 

 

हुए हैं ,इश्क की गारतगरी4 में शर्मिंदा,करने
गिरफ़्तार निकले थे, होकर गिरफ़्तार चले

 

आगे देखना है और क्या रंग लाती है,शोख
जिससे हम ज़फ़ा5कर न सके,वे ज़फ़ाकर चले

 

हम जिसे गुल समझकर सीने से लगाये रखे
थे , आज वे दागे जिगर होकर चले

 



1.स्वभाव 2. रात 3.सुबह 4.बर्बादी 5.लुल्म

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ