Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हम तुम पर अपनी जान वारे हैं

 

हम तुम पर अपनी जान वारे हैं
तुम कहती हो,हम नहीं तुम्हारे हैं

 

बद्गुमानों से इश्क का दावा कर
हम हर बार शर्त हारे हैं

 

यह फ़साना तुम्हारा नहीं
मगर चर्चे हर जगह तुम्हारे हैं

 

कहते,दिल दोनों का मिलता नहीं
मिलती केवल घर की दीवारें हैं

 

अब गर्मी-ए-इश्क भी नहीं रही
ये खुद के दिल से भी बेसहारे हैं

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