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इस मर्त्तलोक में क्या धरा है

 

इस मर्त्तलोक में क्या धरा है – डा० श्रीमती तारा सिंह


यह कहना  कि मर्त्तलोक मरने वाला है

सुर लोक अमर हैक्योंकि वहाँ देवताओं

का पहरा  हैसूरज की प्रखर किरण है

शुभ्र चाँदनी का शीश महल हैतारिकाओं

की रत्न जड़ित शिखा-सी निर्घूम काया है

इस मर्त्तलोक पर केवल रोग शोक रहते हैं

प्राणी जीवन पर विषाद  का  पहरा होता  है

पृथ्वी की सुंदरताक्षण भर की माया है

स्वर्ग में सौभाग्य भरा है,मर्त्तलोक में क्या धरा है

अग्यानता वश हमें यह नहीं मालूम है

कि सृष्टि  में व्याप्त एक मन होता हैजिसने 

रचा धरती को उसी ने अम्बर को रचा  है

जिसने सूरजचाँदतारों को बनाकर आकाश

का साम्राज्य उसे संभालने दिया है,उसी ने पहाड़ों

की गरिमा का ध्यान रखते हुए,  हरियाली को

वहाँ बसाया है,वह सब में है,सब उसमें हैं ,फिर 

यह कहना कैसाकि मर्त्तलोक मरनेवाला  है

ऐसे भी कौन यहाँ युग - युग तक  जीने आया है

आज यहाँ कल तो फिर वहीं जाना है दो दिन के 

मेहमान हैं हम,इसमें धधक-धधककर क्याजीना है

क्यों नहीं  हम दूर तक  फैली हुई है शबनम -सी

जोहरियाली उसे देख -देखकर खुश होकर जीते हैं

व्यर्थ हम मृत्ति को देख-देखकर,स्वर्ग से ईर्ष्या करते हैं

जिसके आगे  हमारी शांति मलिन रहती है हम 

जितनेदिनों तक जीते हैंबुझे - बुझे से रहते हैं



सभी जानते हैं,सृष्टि नहीं संकुचित किसी एक आनन में 

जिसे  हम आसमांकहते हैं ,वह पृथ्वी की छाया है 

वहाँ  भी विगत कर्म  का विष विषात तन रहता है

उल्काधारी प्रहरी बन टहलते रहते हैं मगर वसुधा पर

ऐसा नहीं होता है,यहाँअणु-अणु स्वतंत्र होकर जीते हैं

कण – कण  तरंगों संग मिलकर मचलतारहता है

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