Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जान की तरह सीने से लगाये रखती

 

जान की तरह सीने से लगाये रखती
हो तुम जिसे, वह मेरी तस्वीर नहीं है

 

मर मिटे खाक1 मेरा, दर- ए-यार2 पे
हमको मिली , ऐसी तकदीर नहीं है

 

दूर दुनिया में, मेरे गम से फ़ैल जायेगा
अंधेरा , किसी के वश में ताबीर3 नहीं है

 

जर्रे-जर्रे4 को बाँधा जिसने, क्यों उसके
पास कुफ़्र5 को बाँधने की जंजीर नहीं है

 

दूरी-ए-जन्नत को रोता आ रहा इन्सां
रूके कहाँ,जमीं पे मिलती वो लकीर नहीं है

 

तोड़ने से टूटती नहीं,गम की जंजीरें,तस्वीर
बदल लेने से बदलती तकदीर नहीं है

 



1.राख 2. यार के चौकठ पर 3.स्वप्न का
फ़ल 4. कण-कण 5. नास्तिक

 

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