Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन के सफ़र पे,हम अकेले थे चले

 

जीवन  के  सफ़र  पे, हम  अकेले थे चले

तुम   मुसाफ़िर   कहाँ   से   आ   मिले

अब  मत  पूछ, वजहे  मलाल क्या है,क्यों

ता  उम्र  हम  भाग्य  की बेरूखी पर तुले

वीरां  दिल  में हर तरफ़,शोले थे लहरा रहे

तुम्हारे  दयार  में  हम खिरमने- उम्र जले

फ़िर  भी न जल्लाद  तक  पहुँच पाये हम

हम  तो  वहीं रहे, हमारे  पाँव  बहुत चले

आज दामने प्राण गुले नरगिस से भर गया

हमारा, हम  भूल  गये  सारे शिकवे- गिले

कहते हैं  इश्क में, इज्जत  और  ज़िल्लत

दोनों  हैं  खुदा के हाथ,चलन चाहे जो चले


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