Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिंदगी के सफ़र पे हम साथ चले थे

 

जिंदगी  के  सफ़र  पे   हम  साथ  चले थे

चलते  -  चलते   तुम   कहाँ    खो  गये


अभी  तो  दास्तां- ए- जिंदगी  सुनाना बाकी 

ही था कि  तुम  सुनते -  सुनते   सो  गये


अब  कौन  बचायेगा  मौज की तुफ़ां से मुझे 

नसीबा  मेरी  किस्ती को किनारे पे डुबो गये


देखकर उमड़ती–सरश्के-गम1 को अजीजा2 क्या

मेरे   रकीब3  भी  मुझसे  लगके  रो  दिये


शामे- जिंदगी  में,  वीराना  है  पसरा  हुआ

मेरे  साथ  चलने वाले, सभी आसमां हो गये




       1.पीड़ा का अश्रु 2. मित्र गण 3. शत्रु


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