जिंदगी के सफ़र पे हम साथ चले थे
चलते - चलते तुम कहाँ खो गये
अभी तो दास्तां- ए- जिंदगी सुनाना बाकी
ही था कि तुम सुनते - सुनते सो गये
अब कौन बचायेगा मौज की तुफ़ां से मुझे
नसीबा मेरी किस्ती को किनारे पे डुबो गये
देखकर उमड़ती–सरश्के-गम1 को अजीजा2 क्या
मेरे रकीब3 भी मुझसे लगके रो दिये
शामे- जिंदगी में, वीराना है पसरा हुआ
मेरे साथ चलने वाले, सभी आसमां हो गये
1.पीड़ा का अश्रु 2. मित्र गण 3. शत्रु
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