Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जिंदगी का हर दावँ, हम हार बैठे हैं

 


जिंदगी का  हर  दावँ, हम  हार  बैठे  हैं

माँझी  छोड़  गया , हम  मझधार  बैठे हैं


दुनिया  वालों   से  कोई  शिकायत  नहीं

हम  तो  यहाँ  मौत  के  इंतज़ार  बैठे हैं


कोईहमपरफ़ूल  फ़ेंके  या   पत्थर

हम अपनी  जिंदगी, उन्हें दे  उधार बैठे हैं


दर्दमंदों  से  दूर  रहने वाले  गुजरो  कभी

इधर से , बतायेंगे हम , क्यों बीमार बैठे हैं


कहने वाले तो यहाँ तक कह गये, एक तुम

ही नहीं,तुम सा बदनसीब यहाँ हजार बैठे हैं

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ