जिंदगी लम्हा -लम्हा घटती चली गई
हवा, दरिया सी, बहती चली गई
अब कैसी लड़ाई उससे, जीवन को
तमाशा- ऐ- जमाना बनाकर चली गई
साजे दिल को जब जरूरत थी ,जिंदगी की
आवाज की,तब ठुकराकर जिंदगी चली गई
जलते - जलते सुबह से शाम गुजरी
दिल है शोला , बताकर चली गई
दिले दर्द की फ़रियाद क्या सुनाऊँ, बगैर
आईने का जलवा दिखाकर चली गई
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