Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिंदगी लम्हा -लम्हा घटती चली गई

 

जिंदगी  लम्हा -लम्हा  घटती  चली  गई

हवा,   दरिया   सी,  बहती  चली  गई

 

अब   कैसी  लड़ाई  उससे, जीवन   को

तमाशा- ऐ- जमाना  बनाकर  चली  गई

 

साजे दिल को जब जरूरत थी ,जिंदगी की

आवाज की,तब ठुकराकर जिंदगी चली गई

 

जलते - जलते   सुबह  से  शाम  गुजरी

दिल    है   शोला , बताकर  चली  गई

 

दिले  दर्द की  फ़रियाद क्या सुनाऊँ, बगैर

आईने  का  जलवा  दिखाकर  चली  गई

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