जिंदगी का यह कौन सा मोड़ है
जमीं है या आसमां का छोर है
तारे कहीं नज़र आते नहीं
आसमां में घटा घनघोर है
आदमी भरी दुनिया में इन्सां
दीखता नहीं, किसका यह शोर है
जब चलती उसकी लाठी सामने
चलता नहीं किसी का जोर है
हर कॊई भाग रहा, यहाँ क्या
फ़लक से निकलने की कोई होड़ है
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