Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिस दिल की जान हो

 

जिस दिल की जान हो
तुम, उसी से अनजान हो

 

कहते हया आती है, साकी
तुम कैसे पासबान हो

 

इश्क की खाक भी न उड़ने
दिया , फ़िर क्यों परेशान हो

 

तुम्हारे हाथ बज्म की शमा नहीं
तुम कैसे मेजबान हो

 

गैर की फ़िक्रे-वफ़ा आईने से
मत करो , अभी तुम जवान हो

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