जिस दिल की जान हो
तुम, उसी से अनजान हो
कहते हया आती है, साकी
तुम कैसे पासबान हो
इश्क की खाक भी न उड़ने
दिया , फ़िर क्यों परेशान हो
तुम्हारे हाथ बज्म की शमा नहीं
तुम कैसे मेजबान हो
गैर की फ़िक्रे-वफ़ा आईने से
मत करो , अभी तुम जवान हो
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