Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीते जी रिश्ता तुमसे तोड़ा न गया

 


जीते जी रिश्ता तुमसे तोड़ा न गया

चाहकर भी दिल से तुम्हारा साया न गया


हर पल आँखों  में रहती हो ,तसवीर बनकर

तुम से आगे भी कुछ है सोचा  न गया


रह गई मेरी जिंदगी,एक अधूरी ग़ज़ल बनकर

काफ़िया मिलामतला को ढूँढा  न गया 


शहादतगहे-हस्ती में जिंदगी इतनी दूर रही

मौत को चाहकर भी  गले लगाया न गया


अश्क को ज़ाम   समझकर पीता रहा

ज़ाम -ए गिलास  खाली थाबताया न गया 



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