Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन नद का मिलता कोई कहाँ किनारा

 

जीवन   नद   का   मिलता  कोई   कहाँ  किनारा

अंधेरे  ही  अंधेरे  हैं, दीखता  कहाँ  उजियारा


जिस  मोहब्बत की चाह में,हमने दोनों जहाँ को

हारा, होता  कहाँ अब, दिल  का  वहाँ  गुजारा


बेशक  सितमगर  अनजान  थे  मगर, कितनी

मुलाकातें  बाद होंगे, आशना ,किया कहाँ इशारा


दिल  ने कई बार चाहा,समझ लूँ मगर बदनसीब 

तकदीर ने समझने की मुहलत दिया कहाँ दुबारा


कहा, उजाड़  वन में  कुछ आसार  से चमन के

मिले  थे, मगर  मत  सोच मिले  थे कहाँ तारा


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